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________________ प्रभाव जलवायु पर पड़ा है। इनके कट जाने से आर्द्रता कम हो गई, जिससे वर्षा में बहुत कमी हो गई है। वन के घने जंगलों में लगे वृक्ष प्रदूषित वायु का कार्बनडाई ऑक्साइड ग्रहण कर बदले में आक्सीजन देकर वायु को शुद्ध करते थे वह शुद्धीकरण की प्रक्रिया अति धीमी हो गई है। फलतः वायु में प्रदूषण बढ़ता जा रहा है, जो मानव जाति के स्वास्थ्य के लिए अति हानिकारक है। रासायनिक खाद एवं कीटनाशक दवाइयों के डालने से कृषि उपज में अनाज फल, फूल, दालों की संरचना में उनका दूषित प्रभाव बढ़ता जा रहा है, जो स्वास्थ्य के लिये अति हानिकारक है एवं पौष्टिक तत्त्व का, विटामिन एवं प्रोटीन का भी घातक है। यही कारण है कि अमरीका में रासायनिक खाद से उत्पन्न हुए गेहूँ के . भाव से बिना रासायनिक खाद में उत्पन्न हुए गेहूँ का भाव आठ गुना है। त्रसकाय प्राणातिपात- दो इन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीव तथा केंचुए, चींटी, मधुमक्खी, भौरे, चूहे, सर्प, पक्षी, पशु आदि चलने फिरने वाले जीव त्रसकाय कहे जाते हैं। इन जीवों की उत्पत्ति प्रकृति से स्वतः होती है तथा संतुलन भी बना रहता है। ये सभी जीव फसल का संतुलन बनाये रखने में सहायक होते हैं। केंचुआ भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाता है। आज दवाइयों से इन जीवों को मार दिया जाता है, जिससे पैदावार में असंतुलन हो गया है तथा जीवों की अनेक प्रजातियां लुप्त हो गई जैन धर्म में उपर्युक्त सब प्रकार के जीवों के प्राणातिपात करने रूप प्रदूषणों के त्याग का विधान किया गया है। यदि इस व्रत का पालन किया जाय और पृथ्वी, जल, वायु, वनस्पति आदि को प्रदूषित न किया जाय, इनका हनन न किया जाय तो मानव जाति प्राकृतिक प्रदूषणों से सहज ही बच सकती है। फिर पर्यावरण के लिए तो किसी भी कानून को बनाने की आवश्यकता ही नहीं रहेगी। इस प्रकार से अहिंसा पालन से पर्यावरण की समस्त समस्याओं का समाधान संभव है। 2. मृषावाद विरमण दूसरा व्रत है- झूठ का त्याग। अर्थात् जो वस्तु जिस गुण, धर्म वाली है उसे वैसी ही बताया जाय। आज चारों ओर व्यापार में मृषावाद का ही बोलबाला है। उदाहरण के लिए रासायनिक खाद दीर्घकाल की उपज की खेतों की उर्वरा शक्ति को नष्ट करने वाला है तथा स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक है, उसकी इन बुराइयों को छिपाकर उसे खेती के लिए लाभप्रद बताया गया है। इसी प्रकार सिन्थेटिक धागे के वस्त्र स्वास्थ्य के लिए अति हानिकर हैं, उनकी इस यथार्थता को छिपाया जाता है - - 50 - -- - स्वाध्याय शिक्षा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002542
Book TitleSwadhyaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2003
Total Pages174
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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