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दूषित जल धरती में उतर कर कुओं के जल को तथा नदी में गिरकर नदी के जल को दूषित करता जा रहा है तथा दूषित जल के कीटाणुओं का नाश करने के लिये पीने के पानी की टंकियों में पोटेशियम परमेंगनेट मिलाया जा रहा है जो स्वास्थ्य के लिये अहितकर है। नलों से भी जल का बहुत अपव्यय होता है। यह सब जल का प्रदूषण ही है। जैन धर्म में एक बूंद जल भी व्यर्थ ढोलना पाप तथा बुरा माना गया है। अतः धर्म के सिद्धान्तों का पालन किया जाय तो जल के प्रदूषण से पूरा बचा जा सकता है। तेजस्काय का प्राणातिपात प्रदूषण- जीवन के लिये जैसे जल और वायु आवश्यक हैं वैसे ही उष्णता भी आवश्यक है। यह आवश्यक उष्णता सूर्य से स्वतः प्राप्त होती रहती है। इस उष्णता से शरीर को कुछ भी हानि नहीं होती है अर्थात् यह उष्णता (उष्मा) पूर्ण रूप से प्रदूषण रहित होती है। परन्तु मनुष्य अतिरिक्त उष्णता प्राप्त करने के लिए कंडे, कोयले, लकड़ी आदि जलाकर कृत्रिम उपायों से आग पैदा करता है। कोयले, लकड़ी, गैस आदि जलाने से जो आग उत्पन्न होती है उससे वातावरण प्रदूषित होता है। अंगीठी में कोयला, चूल्हें में लकड़ी, आदि के जलने से जो आग प्रज्वलित होती है उससे कार्बन डाइआक्साइड तथा कार्बन मोनोक्साइड आदि गैसें उत्पन्न होती हैं। ये गैसें श्वास के द्वारा फेफड़ों में जाकर रक्त में घुल जाती हैं, जिससे रक्त का हिमोग्लोबिन घटता है और रक्त अशुद्ध हो जाता है। यह स्वास्थ्य के लिए अत्यंत घातक है तथा मृत्यु का कारण भी बन जाता है। कमरे में अंगीठी जलाकर दरवाजा बंद कर देने से मृत्यु होने की घटनाएँ समाचार पत्रों में पढ़ने में आती ही रहती हैं।
वर्तमान में फैक्ट्रियों एवं वाहनों के संचालन में पैट्रोल तथा डीजल जलने से कार्बन मोनोऑक्साइड व सल्फर डाई ऑक्साइड गैसें निकलती हैं, फैक्ट्री से इन गैसों के साथ नाइट्रोजन आक्साइड गैस भी निकलती हैं। ये गैसें एसिड बनाती हैं जो स्वास्थ्य के लिये अत्यन्त हानिकारक हैं। ये गैसें वायुमंडल में व्याप्त हो जाती हैं, जहां ये वर्षा के जल में घुलकर धरती पर बरसती हैं। इसे एसिड ड्रेन रेन कहते हैं। यह वर्षा पेड़, पौधों, पशु, पक्षियों आदि जीवों के लिए तो घातक होती ही है, निर्जीव पदार्थों के लिए भी हानिकारक होती है। इन्हीं गैसों से उत्पन्न हुए एसिड से ताजमहल की दीवारों एवं सौन्दर्य को भारी क्षति पहुंची है।
उपर्युक्त सभी गैसें तापमान में वृद्धि करती हैं, जिससे समुद्रों में स्थित हिमखण्डों एवं पर्वतों पर स्थित ग्लेशियरों की बर्फ पिघल रही है। बर्फ के पिघलने से समुद्रों के जल की सतह ऊपर उठ रही है। वैज्ञानिकों का ऐसा मानना है कि कुछ ही
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