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________________ टेलीविजन, सिनेमा आदि अधिक समय देखकर अपनी आंखों से अधिक काम लेकर इनकी शक्ति क्षीण कर देता है। वह अपनी आंखों की अमूल्य प्राण शक्ति को हानि पहुंचा कर अपना ही अहित कर लेता है। यही बात कान, जीभ आदि समस्त इन्द्रियों के प्राणातिपात पर घटित होती है। जैन धर्म में पृथ्वी, पानी, हवा तथा वनस्पति में जीव माना है, इन्हें प्राण वाला माना है, इन्हें विकृत करने को इनका प्राणातिपात माना है, परन्तु मनुष्य अपनी सुख-सुविधा एवं संपत्ति के लोभ से इनका प्राण हरण कर इन्हें निर्जीव, निष्प्राण एवं प्रदूषित कर रहा है, यथापृथ्वीकाय का प्राणातिपात प्रदूषण- कृषि भूमि में रासायनिक खाद एवं एन्टीबायोटिक दवाएँ डालकर भूमि को निर्जीव बनाया जा रहा है जिससे उसकी उर्वरा शक्ति/ प्राणशक्ति नष्ट होती है। परिणामस्वरूप भूमि बंजर हो जाती है फिर उसमें कुछ भी पैदा नहीं होता है तथा रासायनिक खाद से पैदा हुई फसल शरीर के लिए हानिकारक एवं प्रदूषित होती है। ___ भूमि का दोहन करके खाने खोदकर, खनिज पदार्थ, लोह, तांबा, कोयला, पत्थर आदि प्रतिवर्ष करोड़ों टन निकाला जा रहा है, उसे निर्जीव बनाया जा रहा है तथा उसे कौड़ियों के भाव में विदेशों को विदेशी मुद्रा अर्जन करने के लिए बेचा जा रहा है। भले ही इस भूमि दोहन से भावी पीढ़ियों के लिये वह खनिज पदार्थ न बचे, भावी पीढ़ियाँ इन पदार्थों के लिये तरस-तरस कर मरें, अपने पूर्वजों के इस दुष्कर्म का फल अत्यन्त दुःखी होकर भोगें, इस बात की चिन्ता वर्तमान पीढ़ी व सरकारों को कतई नहीं है। यही बात पैट्रोलियम पदार्थों पर भी घटित होती है। उसका भी इसी प्रकार भयंकर दोहन हो रहा है। आज विश्व में पचास करोड़ कारें, लाखों दुपहिया वाहन, करोड़ों कारखानों में अरबों टन पेट्रोल जलाया जा रहा है, जिससे पेट्रोल के भंडार खाली होते जा रहे हैं। इससे एक दिन भावी पीढ़ियों के लिए कुछ भी नहीं बचेगा। इस प्रकार पेट्रोल तथा लोहा आदि वस्तुओं का दोहन तथा इनसे पैदा होने वाला जल-प्रदूषण व तापमान वृद्धि का दुष्प्रभाव- ये सब भावी पीढ़ियों के लिए अभिशाप बनने वाले हैं। अप्काय का प्राणातिपात प्रदूषण- जल में अन्य पदार्थ मिलने से अप्काय के जीवों के प्राणों का हरण होता है यही जल प्रदूषण है, वर्तमान काल में धन कमाने के लिये बड़े- बड़े कारखाने लगे हैं, उनमें प्रतिदिन करोड़ो-अरबों लीटर जल का उपयोग होता है। वह सब जल प्रदूषित हो जाता है, रासायनिक पदार्थों के संपर्क से, नगर के गंदे नालों का जल मल-मूत्र आदि गंदगी से दूषित होता जा रहा है। यह स्वाध्याय शिक्षा - - 47 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002542
Book TitleSwadhyaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2003
Total Pages174
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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