SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अर्थात हित-मित, मृदु और विचारपूर्वक बोलना वाणी का विनय है। इसी प्रकार कहा गया है "पुट्विं बुद्धीए पासेत्ता, तत्तो वक्कमुदाहरे। अचक्खुओ व नेयारं, बुद्धिमनेसए गिरा।।" अर्थात् पहले बुद्धि से परख कर फिर बोलना चाहिए। अंधा व्यक्ति जिस प्रकार पथ-प्रदर्शन की अपेक्षा रखता है, उसी प्रकार वाणी बुद्धि की अपेक्षा रखती शिक्षा के साधक तत्त्व नीचे दी हुई पन्द्रह प्रकार की प्रवृत्तियों का सेवन करने वाला व्यक्ति शिक्षा के योग्य कहा गया है०१. जो नम्र होता है। ०२. जो चपल नहीं होता। ०३. जो मायावी नहीं होता। ०४. जो कुतूहल नहीं करता। ०५. जो किसी पर आक्षेप नहीं करता। ०६. जो क्रोध को टिकाकर नहीं रखता। ०७. जो मैत्री करने वाले के साथ मैत्री का व्यवहार करता है। ०८. जो ज्ञान का मद नहीं करता। ०६. स्खलना होने पर किसी का तिरस्कार नहीं करता। १०. मित्रों पर क्रोध नहीं करता। ११. अप्रियता रखने वाले मित्र की भी एकांत में प्रशंसा करता है। १२. कलह और हाथापाई का वर्जन करता है। १३. कुलीन होता है। १४. लज्जावान होता है। १५. प्रतिसंलीन-इन्द्रिय और मन का संगोपन करने वाला होता है। . शिक्षा के बाधक तत्त्व उत्तराध्ययन सूत्र में शिक्षा के बाधक तत्त्वों का भी वर्णन है___ "अह पेचहि ठाणेहिँ, जेहिं सिक्खा न लब्बई। थंभा कोहा पमाएणं रोगेणाऽलस्सएण य।।"" . इसी प्रकार निम्नलिखित चौदह प्रकार की प्रवृत्तियों का आसेवन करने वाला अविनीत शिक्षा के अयोग्य कहलाता है। वह निर्वाण--मानसिक शांति को स्वाध्याय शिक्षा - - - 37 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002542
Book TitleSwadhyaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2003
Total Pages174
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy