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________________ भी विवेचनीय है। अनेक विदेशी शोधकों ने जैनों की वर्तमान सामाजिक व धार्मिक व्यवस्थाओं पर शोध की है, पर भूतकालीन शोध भी आवश्यक है। ___ अंगबाह्य ग्रंथों में औपपातिक एवं राजप्रश्नीय में कलाओं, स्वप्नशास्त्र तथा अध्यात्म शास्त्र का अच्छा विवरण है। प्रज्ञापना और जीवाभिगम भी भगवती के समान ही विविध विषयों का ज्ञान देते हैं। ये भगवती की तुलना में किंचित् अधिक व्यवस्थित हैं और शीर्षकों के आधार पर वर्णन करते हैं। प्रज्ञापना में अजीव का वर्णन भी पर्याप्त विस्तृत है, जीव से संबंधित विविध विषय इसमें विस्तार से समाहित हैं। इसमें वनस्पति जगत् के प्रत्येक और साधारण भेदों का अच्छा वर्गीकरण है। इन जीवों के कर्म एवं लेश्या संबंधी विवरण आज मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण हैं। जीवाभिगम में २३ द्वारों के माध्यम से नरक, स्वर्ग एवं मध्यलोक के सभी प्रकार के स्त्री, पुरुषों एवं संमूर्छनों का विवरण है। यह बहुत ही विस्तृत है। सूर्य-चन्द्र-प्रज्ञप्ति-द्विक में ज्योर्तिमण्डल का विस्तृत वर्णन है। इसके विवरणों पर लिश्क ने कुछ काम किया है। इन पर अभी और काम करने की आवश्यकता है। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति तो एक प्रकार का भूगोल है। इस संबंध में अन्य आगमग्रन्थों में भी स्फुट विवरण मिलता है। जैनों का यह भूगोल तत्कालीन अन्य मतों की मान्यताओं के अनुसार ही है, लेकिन जैनाचार या सप्त-द्वीपी भूगोल की तुलना में असंख्यात द्वीप समुद्री भूगोल मानता है। त्रिलोकप्रज्ञप्ति आदि ग्रंथ भी जैन भूगोल का वर्णन करते हैं। आधुनिक विचारकों में इस विषय पर पर्याप्त ऊहापोह है। दशवैकालिक और उत्तराध्ययन की गणना मूलसूत्रों में की जाती है। यद्यपि ये मुख्यतः मुनिचर्या से संबंधित हैं, पर इनके 'षड्जीवनिका और जीवाजीवविभक्ति' के अध्याय जीव-विज्ञान की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। यही नहीं, ऐसा माना जाता है कि ये ग्रंथ महावीर के निर्वाण के उपरांत कुछ ही समय में अस्तित्व में आये। इनके विवरणों के आधार पर अन्य ग्रंथों में वर्णित विवरणों के विकास का अनुमान लगाया जा सकता है। उनमें आहार-विज्ञान, मरण-विज्ञान, लेश्या और वर्ण का विज्ञान तथा साधुचर्या के विविधरूपों का वर्णन है। अनुयोगद्वार और नंदीसूत्र उत्तरवर्ती ग्रंथ हैं, पर इनकी मान्यता विद्वज्जगत में अच्छी है। नंदीसूत्र में ज्ञान का विस्तृत वर्णन है, जबकि अनुयोगद्वार में द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव के अंतर्गत परमाणुवाद, गणना-संख्या आदि का प्राथमिक विवरण है। इसमें परमाणु की अविभागिता को सुरक्षित रखने के लिये उसके दो भेद सूक्ष्म और व्यावहारिक किये हैं जिसे उत्तरवर्ती आचार्यों ने भी माना है। यह परमाणुवाद का 26 - स्वाध्याय शिक्षा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002542
Book TitleSwadhyaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2003
Total Pages174
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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