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________________ कहा जाता है। हमारे वर्तमान 'आगम' दोनों प्रकार के ज्ञानों के आदि स्रोत हैं। सर्वप्रथम हम भौतिक जगत् से संबंधित विज्ञानों को लें। इस कोटि में आजकल भौतिकी (परमाणुवाद, ऊर्जावाद आदि) रसायन (पदार्थ विज्ञान), जीव विज्ञान (स्थावर एवं त्रस जगत) आयुर्विज्ञान, आहार विज्ञान, गणित और ज्योतिर्विज्ञान, सिविल एवं सैन्य इंजीनियरी मनोविज्ञान आदि विषय आते हैं। यदि हम आगमों का इस दृष्टि से अध्ययन करें, तो हमें लगता है कि आचारांग से लेकर अनुयोगद्वार और नंदिसूत्र तक प्रायः सभी ग्रंथों में उनमें से एकानेक विषयक तत्कालीन ज्ञान भरा हुआ है। उदाहरणार्थ आचारांग में आहार विज्ञान, जीव-विज्ञान, रोग-विज्ञान आदि का अच्छा विवरण है। यहीं से एकेन्द्रियों की सजीवता और उसके पीड़न की प्रक्रिया में दोष बताये गये हैं। सूत्रकृतांग में विविध जीवों की उत्पत्ति, शरीर आदि का विवरण है। 'ठाणं और 'समवाओ' तो विविध विषयक ज्ञान के कोष हैं। उनमें परमाणुवाद, ध्वनि, प्रकाश, ऊष्मा आदि ऊर्जायें, जीव-विज्ञान के विविध पक्ष, सीखने योग्य ज्ञान-विज्ञान की शाखाएँ, गणितीय संख्याएँ, ज्योतिर्मण्डल के विवरण तथा मनोविज्ञान से संबंधित कषायों के विवरण, मनुष्यों एवं पशुओं के विविध रूपों की मनोवैज्ञानिक प्ररूपणाएँ, मध्यलोक एवं ऊर्ध्वलोक के भवनों एवं विमानों आदि का माप-पूर्ण विवरण, आयुर्विज्ञान के विविध अंग (गर्भधारण तथा गर्भपात भी), आहार विज्ञान आदि से संबंधित अनेक चर्चाएँ पाई जाती हैं। भगवती तो एक विश्वकोश जैसा लगता है। उसमें भी उपर्युक्त विषय स्थान-स्थान पर वर्णित हैं। इसमें अनेक स्थानों पर अनुयोग द्वारा विविध विषयों का वर्णन किया गया है। बहु-परमाणुक बंधों के भंगों की संख्या दी गई है। वनस्पति विज्ञान से संबंधित अनेक सामान्य व विशिष्ट जानकारियां दी गई हैं। अन्य स्थावरों तथा त्रस-जीवों के विषय में भी व्यापक सूचनाएँ हैं। वस्तुतः इन आगमों की विषयवस्तु को विषयवार संकलित कर प्रस्तुत करना चाहिये। इन्हें आर्यरक्षित के अनुयोग-वर्गीकरण से भी व्यापकतः वर्गीकृत कर प्रस्तुत करना चाहिये। ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, विपाकसूत्र, अंतगडदसा आदि कथा-प्रमुख आगमों में भी स्थान-स्थान पर दृश्य जगत् संबंधी अनेक विवरण हैं। इनमें स्वप्नशास्त्र भी आया है। अनेक प्रकार की ऐतिहासिक सामग्री भी है। प्रश्नव्याकरण में . विविध कोटि के स्थावर एवं त्रस जीवों के विभिन्न कार्यों में उपयोग संबंधी सूचनाएँ हैं, जिनसे तत्कालीन समाज शास्त्रीय ज्ञान प्राप्त होता है। ठाणं के समान संगीत, वाद्यों एवं तत्संबंधित नाट्यकला के विविध रूपों का वर्णन है जो आधुनिक दृष्टि से स्वाध्याय शिक्षा - 25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002542
Book TitleSwadhyaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2003
Total Pages174
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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