SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन आगमों में विज्ञान डॉ. नन्दलाल जैन जैनागमों की विषयवस्तु का क्षेत्र व्यापक है। इनमें दुःखमुक्ति की साधना का प्रतिपादन तो है ही, किन्तु आधुनिक विज्ञान की कई शाखाओं के बीज भी आगमों में उपलब्ध हैं। रसायनशास्त्र के विशेषज्ञ एवं जैन धर्म-दर्शन के प्रतिष्ठित विद्वान् डॉ. नन्दलाल जैन ने अपने आलेख में मूर्त एवं अमूर्त जगत् से सम्बद्ध विज्ञान की विषयवस्तु का अन्वेषण किया है। उन्होंने आगमों में उपलब्ध भौतिकी, रसायनविज्ञान, जीवविज्ञान, आयुर्विज्ञान, आहारविज्ञान, गणित, ज्योतिर्विज्ञान, मनोविज्ञान आदि की ओर पाठकों का ध्यान दिलाने के साथ अमूर्त जगत् के पराविज्ञान एवं अध्यात्मविज्ञान की भी चर्चा की है। - सम्पादक शास्त्रों के अनुसार जिनवाणी या आगमवाणी में अनेक विशेषताएँ हैं, जिनमें से कतिपय इस प्रकार हैं १. यह अठारह दोष-रहित सर्वज्ञ या वीतराग द्वारा कथित होती है। २. यह प्रत्यक्ष, अनुमान आदि प्रमाणों से अबाधित होती है। ३. युक्ति शास्त्र की अविरोधी या अविसंवादी होती है। जैनों का विश्वास है कि जैन आगम स्वयं अनुभूत एवं अतिशय प्रज्ञा के प्रतीक हैं। वे न तो परामानवीय शक्ति से आदिष्ट हैं और न ही परामानवीय या दिव्य दूत द्वारा प्रकटित हैं। अतः स्वानुभूति की प्रामाणिकता निर्बाध है। फिर भी, हमारे आचार्य क्रमिक स्मृति- हानि, प्रज्ञाहानि तथा अन्य कारणों से प्रत्यक्ष ज्ञानियों की वाणी को अंशतः ही स्मृति में रख सके। बहुतेरा अंश लुप्त हो गया और अल्प अंश हमें उपलब्ध है। हमारे आगम संकलयिता या निर्माता आचार्य बुद्धिवादी कोटि के थे। ईश्वरवाद के विरोधी होने के कारण आगमों में श्रद्धा एवं विश्वास उत्पन्न करने के लिये उन्होंने इनमें वैज्ञानिकता के तत्त्व समाहित किये। उन्होंने इस हेतु कुछ आधार दिये १. 'क्या, क्यों और कैसे ' की जिज्ञासुवृत्ति । २. ज्ञानप्राप्ति की प्रक्रिया का अवग्रहादि - चतुष्क करण ३. बुद्धि और तर्कशास्त्र का प्रयोग । आगमों में वैज्ञानिक प्रवृत्ति की उद्घोषणाएँ हमारे सांसारिक जीवन के दो मूल रूप हैं- १. भौतिक और २. आध्यात्मिक। आगमों का लक्ष्य मानव को आध्यात्मिक प्रगति के उत्कर्ष पर पहुंचाना रहा है। फलतः उनमें लगभग दो तिहाई विवरण इसी कोटि के हैं। फिर भी, चूंकि हम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002542
Book TitleSwadhyaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2003
Total Pages174
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy