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का प्रतिकार दूसरे शस्त्र के द्वारा संभव है। शान्ति की स्थापना तो अहिंसा या प्रेम द्वारा ही संभव है, क्योंकि अशस्त्र से बढ़कर कुछ अन्य नहीं है। (आचारांग १.३.४) आचारांग में मानवीय व्यवहार के प्रेरक तत्त्व
सामान्यतया राग और द्वेष ये दो कर्म बीज माने गये हैं, किन्तु इनमें भी राग ही प्रमुख तथ्य है। आचारांग सूत्र में कहा गया है कि आसक्ति ही कर्म का प्रेरक तथ्य है(१.३.२)। आचारांग और आधुनिक मनोविज्ञान दोनों ही इस संबंध में एकमत हैं कि मानवीय व्यवहार के मूलभूत प्रकार कितने है, इस संबंध में कोई निश्चित संख्या नहीं मिलती है। पाश्चात्त्य मनोविज्ञान में जहाँ फ्रायड काम या राग को ही एकमात्र मूल प्रेरक मानते हैं, वहीं दूसरे विचारकों ने मूलभूत प्रेरकों की संख्या सौ तक मानी है। फिर भी पाश्चात्त्य मनोविज्ञान में सामान्यतया निम्न १४ मूल प्रवृत्तियाँ मानी गई हैं
१. पलायनवृत्ति (भय) २. घृणा ३. जिज्ञासा ४. आक्रामकता (क्रोध) ५. आत्मगौरव (मान) ६. आत्महीनता ७. मातृत्व की संप्रेरणा ८. समूह भावना ६. संग्रहवृत्ति १०. रचनात्मकता ११. भोजनान्वेषण १२. काम १३. शरणागति और १४. हास्य (आमोद)। आचारांग सूत्र में भय, जिज्ञासा, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग-द्वेष, आत्मीयता, हास्य आदि का यत्र-तत्र बिखरा हुआ उल्लेख उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त हिंसा के कारणों का निर्देश करते हुए कुछ कर्म प्रेरकों का उल्लेख उपलब्ध है। यथा जीवन जीने के लिये, प्रशंसा और मान-सम्मान पाने के लिए, जन्म-मरण से छुटकारा पाने के लिए तथा शारीरीक एवं मानसिक दुःखों की निवृत्ति हेतु प्राणी हिंसा करता है। (१.१.४) दमन का प्रत्यय और आचारांग
सामान्यतया आचारांग में इन्द्रिय-संयम पर काफी बल दिया गया है। वह तो शरीर को सुखा डालने की बात भी कहता है। लेकिन प्रश्न यह है कि क्या पूर्ण इन्द्रिय निरोध संभव है। आधुनिक मनोविज्ञान की दृष्टि से इन्द्रिय व्यापारों का निरोध एक अस्वाभाविक तथ्य है? आंख के समक्ष जब उसका विषय प्रस्तुत होता है तो वह उसके सौन्दर्य दर्शन से वंचित नहीं रह सकती। भोजन करते समय स्वाद को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। अतः यह विचारणीय प्रश्न है कि इन्द्रिय दमन के संबंध में क्या आचारांग का दृष्टिकोण आधुनिक मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से सहमत है? आचारांग इस प्रश्न का उत्तर देते हुए यही बात कहता है कि इन्द्रिय व्यापारों के निरोध का अर्थ इन्द्रियों को अपने विषयों से विमुख करना नहीं, वरन् विषय सेवन के
स्वाध्याय शिक्षा
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