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________________ तथा संसार में सुखी होने के लिये दशवैकालिक सूत्र अध्ययन 2 की गाथा में “छिदाहिं दोसं, विणएज्जं रागं" कहकर द्वेष का छेदन करने एवं राग पर विजय करने का उपदेश दिया गया है। राग और द्वेष को महान् बन्धन तथा स्नेह (राग) को भयंकर पाश उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन २३ गाथा ४३ में बताकर इनको काटने का उपदेश दिया गया है राग और द्वेष दोनों की उत्पत्ति का मूल कारण ममत्व अथवा मोह कहलाता है। आठ कर्मों में सबसे प्रबल कर्म मोह को माना गया है। आचार्य श्री गजेन्द्र मुनि ने स्तवन की कड़ी में कितना सुन्दरे कहा ममता से संताप उठाया, भेद ज्ञान की पैनी धार से > "रागद्दोसाओ तिव्वा, नेहपासा भयंकरा । ते छिन्दित्तु, जहानायं विहरामि जहक्कमं । । " शास्त्रकारों ने भी उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन ३२ गाथा २ में कहा" णाणस्स सव्वस्स पगासणाए, अण्णाणमोहस्स विवज्जणाए " अर्थात् ज्ञान सभी भावों का प्रकाशक है तथा अज्ञान एवं मोह का नाश करने वाला है। इसी प्रकार - "" "वीयरागयाए णं नेहाणुबंधणाणि, तण्हाणुबंधणाणि य वोच्छिंदई । है। - उत्त. 29/45 अर्थात् वीतराग भाव से स्नेह के अनुबन्धनों और तृष्णा के अनुबन्धनों का विच्छेद हो जाता है। आज हुआ विश्वास । काट दिया वह पाश ।। मेरे अन्तर भया प्रकाश..... 8 उत्तराध्ययन सूत्र २६.३६ में कहा गया कि "वीयरागभाव पडिवन्ने वि य नं जीवे सम सुहदुक्खे भवइ । " अर्थात् वीतराग राग भाव को प्राप्त हुआ जीव सुख-दुःख में सम हो जाता उत्तराध्ययन सूत्र अ. ३५ गाथा २१ में कहा गया है "निमम्मो निरहंकारो, वीयरागो अणासवो । संपत्ते केवलं गाणं, सासयं परिणिव्वुए ।।" अर्थात् निर्मम, वीतराग एवं आस्रवों से रहित निर्ग्रन्थ मुनि, शाश्वत केवलज्ञान को प्राप्त कर परिनिर्वृत हो जाता है अर्थात् पूर्णतया आत्मस्थ हो जाता है। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि जैन आगमों का मुख्य प्रतिपाद्य वीतरागता ही है। - संगीता साड़ीज, डागा बाजार, जोधपुर (राज.) स्वाध्याय शिक्षा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002542
Book TitleSwadhyaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2003
Total Pages174
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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