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में १६८६ में हुई संगोष्ठी के शोध-पत्रों की पुस्तक 'जैन आगम साहित्य' डॉ. के.
आर. चन्द्र के सम्पादकत्व में प्रकाशित हुई है। श्री मधुकरमुनि जी द्वारा संक्षेप में 'जैनागम : एक परिचय' नामक लघुपुस्तिका भी लिखी गई है। आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर से प्रकाशित आगमों की भूमिकाएँ भी आगमों का ज्ञान कराने में सहायक हैं। अंग-आगमों के परिचय हेतु आगम, अहिंसा-समता एवं प्राकृत संस्थान, उदयपुर से सद्यः प्रकाशित पुस्तक 'अंग साहित्य : मनन और मीमांसा' भी उल्लेखनीय है।
जिनवाणी पत्रिका के विशेषाङ्क के अनन्तर जो लेख अवशिष्ट रहे वे स्वाध्याय-शिक्षा के आगम-विशेषाङक के रूप में प्रकाशित किए जा रहे हैं। इस विशेषाङ्क में आचारांग, आवश्यकसूत्र, दशाश्रुतस्कन्ध आदि कतिपय आगमों के अतिरिक्त आगम-साहित्य में वीतरागता, विज्ञान, अहिंसा, पर्यावरण-संरक्षण, संगीतकला, शिक्षा, आगम-साहित्य की काव्यशास्त्रीय समीक्षा आदि अनेक विषयों पर लेख सम्मिलित हैं।
आगमों में वर्णित विभिन्न विषयों से पाठकों को अवगत कराना ही इस विशेषाङ्क का लक्ष्य रहा है। लेखकों के सहयोग के बिना इसका प्रकाशन संभव नहीं था । अतः उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ। सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल के अध्यक्ष श्री चेतनप्रकाश जी डूंगरवाल के प्रोत्साहन एवं मन्त्री श्री प्रकाशचन्द जी डागा का सर्वविध सहयोग के लिए मैं उनका भी हार्दिक कृतज्ञ हूँ।
आशा है स्वाध्याय-शिक्षा का यह आगम-विशेषाङ्क स्वाध्यायी पाठकों के ज्ञान में किचिं वृद्धि करने में सहायक सिद्ध होगा।
–धर्मचन्द जैन
XII
स्वाध्याय शिक्षा
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