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________________ निकलकर भव्यजीव के कर्णविवर में प्रवेश कर क्षायोपशमिक भाव को प्रकट करने का हेतु है अथवा जो सुना जाता है वह श्रुत है, श्रुतों का स्कन्ध अर्थात् समूह रूप यह दश अध्ययनों का प्रतिपादन करने वाला दशाश्रुतस्कन्ध आगम है अथवा छेदसूत्रों में आगम विशेष का नाम दशाश्रुतस्कन्ध है और इसे दशाकल्प भी कहते हैं। ___ठाणांग सूत्र में दशाश्रुतस्कन्ध को आचारदशा भी कहा है। स्थानांग सूत्र के दसवें स्थान में इसके दस अध्ययनों का उल्लेख होने से ‘दशाश्रुतस्कन्ध' यह नाम अधिक प्रचलित हो गया है। दस अध्ययनों के नाम-१. असमाधिस्थान २. शबल दोष ३. आशातना ४. गणिसम्पदा ५. चित्तसमाधि स्थान ६. उपासक प्रतिमा ७. भिक्षु प्रतिमा ८. पर्युषण कल्प ६. मोहनीय स्थान १०. आयति स्थान। दशाश्रुतस्कन्ध का १८३० अनुष्टुप श्लोक प्रमाण उपलब्ध पाठ है। २१६ गद्यसूत्र और ५२ पद्य सूत्र है। प्रकारान्तर से दशाश्रुतस्कन्ध की दशाओं के प्रतिपाद्य विषय का उल्लेख इस प्रकार से है१. प्रथम, द्वितीय, तृतीय दशा में और नवीं-दसवीं दशाओं में साधक के हेयाचार का वर्णन। २. चौथी दशा में ज्ञेयाचार और उपादेयाचार का कथन। ३. पांचवीं दशा में उपादेयाचार का निरूपण। ४. छठी दशा में अनगार के लिए ज्ञेयाचार और श्रावक के लिए उपादेयाचार का कथन। ५. सातवीं दशा में अनगार के लिए उपादेयाचार और श्रावक के लिए ज्ञेयाचार का कथना ६. आठवी दशा में अनगार के लिए कुछ ज्ञेयाचार, कुछ हेयाचार और कुछ उपादेयाचार का निरूपण। अतः दशाश्रुतस्कन्ध आगार और अनगार दोनों के लिये उपयोगी है। एक-एक विषय को लेकर अलग-अलग अध्याय का निर्माण किया गया है। इन सभी दशाओं की विषय सामग्री इस प्रकार हैप्रथम दशा- इसका नाम 'असमाधिस्थान दशा' है। “समाधानं समाधिचेतसः स्वास्थ्यं मोक्षमार्गेऽवस्थानमित्यर्थः" अर्थात् चित्त का स्वास्थ्य भाव और मोक्ष की ओर लगना ही समाधि कहलाता है, इसके विपरीत हो, वह असमाधि है। असमाधि के यहाँ बीस स्थान बताए गए हैं। ये बीस से अधिक भी हो सकते हैं, किन्तु यहां नयों के अनुसार ही असमाधि के बीस स्थान कहे हैं। असमाधि के २० स्थान निम्न हैं 112 - स्वाध्याय शिक्षा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002542
Book TitleSwadhyaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2003
Total Pages174
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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