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१. द्रुत-द्रुतचारी होना २. अप्रमार्जितचारी होना ३. दुःप्रमार्जितचारी होना ४. अतिरिक्त शय्या आसन रखना ५. रात्निक (ज्येष्ठ साधु) के सामने बोलना ६. स्थविरों का उपघात करना ७. भूत (पृथ्वी आदि) का घात करना ८. आक्रोश करना ६. क्रोध करना १०. निन्दा करना ११. निश्चयात्मक भाषा बोलना १२. कलह उत्पन्न करना १३. पुरानी बातें पुनः उठाना १४. अकाल में स्वाध्याय करना १५. सचित्तरज युक्त व्यक्ति से भिक्षा ग्रहण करना १६. अनावश्यक बोलना १७. संघ में भेद करने वाले वचन कहना १८. कलह करना १६. सूर्योदय से सूर्यास्त तक कुछ न कुछ खाते रहना २०. अनेषणीय भक्त-पानादि की एषणा करना। दूसरी दशा- असमाधि स्थानों के आसेवन से शबल दोष की प्राप्ति होती है। अतः इस दशा में २१ शबल दोषों का विस्तृत वर्णन है। “मूलगुणेषु आदिमेषु भंगेषु शबलो भवति चतुर्थे भंगे सर्वभंगः" अर्थात् मूल गुणादि में प्रथम तीन का भंग शबल दोषाधायक (दोष करने वाला) होता है और चतुर्थ का भंग सर्वभंग कहलाता है। २१ शबल दोष इस प्रकार हैं- १. हस्तकर्म २. मैथुन प्रतिसेवन ३. रात्रि भोजन करना ४. आधार्मिक आहार खाना ५. राजपिंड खाना ६. औद्देशिक क्रीत, प्रमित्यक, आच्छिन्न, अनिसृष्ट और आहृत्य दीयमान आहार को खाना ७. पुनः पुनः प्रत्याख्यान करके खाना ८. ६ मास के भीतर एक गण से दूसरे गण में जाना ६. एक मास के भीतर तीन बार उदक लेप करना १०. एक मास में तीन बार माया करना ११. शय्यातर का आहार लेना १२. जानबूझ कर प्राणातिपात करना १३. असत्य बोलना १४. अदत्त वस्तु ग्रहण करना १५. सचित्त स्थान पर कायोत्सर्ग करना १६. सचित्त रज आदि से युक्त भूमि पर शयन एवं स्वाध्याय करना १७. जीव विराधना की संभावना हो, ऐसे स्थान पर कायोत्सर्ग, आसन, शयन और स्वाध्याय करना १८. जानकर के कन्दमूल, स्कन्ध, त्वक्, पत्र, बीज आदि का भोजन करना १६. एक वर्ष में दस बार उदक लेप करना २०. एक वर्ष में दस बार माया करना २१. शीत-उदक के गीले हाथ से, पात्र से अशन-पान-खादिम-स्वादिम आहार को ग्रहण कर खाना। तीसरी दशा- जो शबल दोषी होते हैं, उनसे निश्चित रूप से आशातना होती है। "ज्ञान- दर्शने शातयति-खण्डयति-तनुतां नयतीत्याशातना' अर्थात् जिस क्रिया के करने से ज्ञान, दर्शन और चारित्र का हास अथवा भंग होता है, वह आशातना कहलाती है। बड़े साधु के आगे चलना, अति समीप चलना, आगे खड़े होना, आसन्न खड़े होना आदि दोष हैं। आहार अपने बड़े साधु से पूछकर एवं दिखाकर नहीं करना, बड़े साधु के सामने बोलना, उनके आसन से ऊँचे आसन पर बैठना स्वाध्याय शिक्षा
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