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दशाश्रुतस्वधा : एक परिचय
सुश्री श्वेता जैन छेदसूत्रों में दशाश्रुतस्कन्ध की गणना सर्वप्रथम की जाती है। छेदसूत्र श्रमण-श्रमणियों को शुद्धाचार पालन एवं प्रायश्चित्त आदि के विधान की विधि बतलाते हैं। दशाश्रुतस्कन्ध की दशाओं में श्रमण-श्रमणियों के आचार एवं उपासकों की प्रतिमाओं का विवरण है। इसमें आचार्य की आठ सम्पदाओं, 20 असमाधिस्थानों, 21 शबल दोषों, 33 आशातनाओं, 12 भिक्षु प्रतिमाओं, मोहनीय कर्म के 30 बन्ध-स्थानों का भी वर्णन उपलब्ध है। लेखिका ने दशाश्रुतस्कन्ध की विषयवस्तु को संक्षेप में स्पष्ट किया है। -सम्पादक
जैन संस्कृति के उद्गमस्थल आगम अंग-उपांग-मूलसूत्र-छेदसूत्र में विभाजित हैं। अंग, उपांग और मूलसूत्र जैन दर्शन के सैद्धान्तिक पक्ष को पुष्ट करते हैं, वहीं छेदसूत्र आचार पक्ष को संपुष्ट करते हैं। आचार की रिक्तता में सैद्धान्तिक पक्ष सदैव पंगु रहता है। अतः जैन दर्शन के सिद्धान्तों को व्यवहार योग्य बनाने में और उसे सुरक्षा प्रदान करने में छेदसूत्रों का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है।
. छेदसूत्रों का श्रमण जीवन में उत्सर्ग और अपवाद की दृष्टि से विस्तृत वर्णन उपलब्ध होता है। साधनामय जीवन में संभावित दोषों से बचने एवं दोष शुद्धि करने के उपायों का वर्णन ही इन छेदसूत्रों का विषय रहा है। परम्परा के अनुसार छेदसूत्रों का प्रकाशन तथा सार्वजनिक रूप से उन पर प्रवचन वर्जित था। परन्तु साहित्य सरिता के प्रवाह ने उन मर्यादाओं का अतिक्रमण कर दिया।
'छेद' शब्द का सामान्य अर्थ विभाग या अवयवों के छेदन-भेदन से लिया जाता है, किन्तु धर्मसंबंधी छेद का लक्षण इस प्रकार है
बज्झाणुवाणे जेण प बाहिज्जए तोनियया।
संभवइ य परिसुद्धं सो पुप धमम्मि छेउत्ति।।
जिन बाह्यक्रियाओं से धर्म में बाधा न आती हो और जिससे निर्मलता की पुष्टि हो, उसे छेद कहते हैं। पुरानी सावध पर्याय को छोड़कर अहिंसा आदि पाँच प्रकार के यमरूप धर्म में आत्मा को स्थापित करना छेदोपस्थापना संयम है।
छेदोपस्थापना संयम का उल्लेख स्थानांग में श्रमणों के पाँच चारित्र के संबंध में मिलता है। वर्तमान में सामायिक स्वल्पकालीन और छेदोपस्थापनिक चारित्र ही जीवन पर्यन्त रहता है। प्रायश्चित्त का संबंध भी इसी चारित्र से है। संभवतः इसी चारित्र को लक्ष्य में रखकर प्रायश्चित्त सूत्रों को छेदसूत्र की संज्ञा दी गई है।
श्वेताम्बर श्रमणों की संख्या प्रारम्भ से ही अत्यधिक रही, जिससे समाज की सुव्यवस्था हेतु छेदसूत्रों का निर्माण हुआ। छेदसूत्रों में श्रमणाचार के निगूढ रहस्य
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