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सहायक होना।
इस प्रकार जैनागमों में अभिव्यक्त शिक्षा और शिक्षार्थी का वास्तविक रूप-स्वरूप यदि स्थिर किया जाए तो कहा जा सकता है कि शिक्षा वह है जिससे व्यक्ति के अन्दर आत्मबल जाग्रत हो और उसे प्राप्त कर व्यक्ति में सामर्थ्य व स्वावलम्बन के संस्कारों की सुस्थापना हो तथा शिक्षार्थी वह है जिससे शिक्षार्जन करने के उपरान्त विनय, बल और विवेक की भावना जागृत हो। इनके रूप-स्वरूप को यदि आत्मसात् कर लिया जाए तो आज जो समस्याएं समाज और राष्ट्र में फैली हुई हैं, वे समाप्त हो सकती हैं। समस्याओं का समाधान होने पर ही समाज और राष्ट्र अपने आदर्श और अभ्युदय की स्थापना कर सकता है, उन्नति कर सकता है। -मंगल कलरा, ३९४, सर्वोदय नगर, आगरा रोड़, अलीगढ़ (उ.प्र.)
स्वाध्याय शिक्षा
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