SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम का महत्त्व पाश्चात्त्य जगत के महामनीषी डॉ. हरमन जेकोबी, डॉ. शुब्रिग जिन्होंने वर्षों तक जैन आगमों का गहराई से अनुशीलन और परिशीलन किया और उसके पश्चात् उन्होंने ये विचार व्यक्त किये कि अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकान्त व सर्वधर्म समन्वय के चिन्तन से ओतप्रोत आध्यात्मिक जीवन को आलोक प्रदान करने वाला यदि कोई साहित्य है तो वह जैनागम है। -आचार्य देवेन्द्र मुनि जिस प्रकार पर्वतीय निर्झर निईरित होते हुए सरिता का स्वरूप धारण कर जनजीवन के लिए उपयोगी बनकर उसकी तृषा को शान्त करता है, उसी प्रकार जिनवाणी की गंगा मानव जीवन में आत्मचेतना एवं जागृति पैदा कर ज्ञान तृषा को बुझाती है। -श्री गणेश मुनि शास्त्री साधक के लिए आगम का बहुत बड़ा महत्त्व है। भौतिक शरीर में जो स्थान नेत्रों का होता है, साधक जीवन में वही स्थान आगम का है। इसलिए कहा भी है'आगमचक्खू साहू'। जिसका यह तृतीय नेत्र उद्घाटित हो जाता है वह पारदृश्टवा बन जाता है। -संघशास्ता मुनिश्री रामकृष्ण जी महाराज साधक को जब भी अवकाश मिले, वह सूत्र और अर्थ के चिन्तन की गहराई में अवगाहना करें। ज्ञान पारावार है। स्वयंभूरमण की तरह विशाल है । इसमें कितने रत्न छिपे पड़े हैं, इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता। इसके भीतर छिपी सम्पदा को तो कोई निर्भय गोताखोर ही पा सकता है। -अध्यात्मयोगी आ. श्री चन्दनमुनि "मुत्तूण दिट्ठिवायं कालिय-उक्कालियंगसिद्धंतं। थी-बाल-वायणत्थं पाइयमुइयं जिणवरेहि।। दृष्टिवाद को छोड़कर शेष कालिक-उत्कालिक, अंग-सिद्धान्त साहित्य का बाल-वृद्ध, स्त्री-पुरुष सब सरलता से वाचन एवं अध्ययन कर सके, इसलिए तीर्थंकरों ने श्रुत साहित्य का उपदेश प्राकृत भाषा में दिया। 100 स्वाध्याय शिक्षा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002542
Book TitleSwadhyaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2003
Total Pages174
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy