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सभी प्राणियों को दुःख अप्रिय है। अतः किसी भी जीव की हिंसा न करो।
"जइ मज्झ कारणा एए, हम्मति सुबहू जीवा।
न मे एयं तु निस्सेसं परलोगे भविस्सई।।"-उत्तराध्ययन 22
भगवान अरिष्टनेमी कहते हैं- यदि ये पशु मेरे विवाह निमित्त काटे जाते हैं तो यह हिंसाकारी कार्य मेरे परलोक के लिए कल्याणकारी नहीं होगा।
"बहुजणस्सणेयारे, दिवं ताणं च पाणिणं। ।
एयारिसं नरहन्ता,महामोहे पकुम्बइ।।"-दशाश्रुतस्कन्ध 9.17
जो जनता का नेता है और जो दुःखीजनों के लिए द्वीप के समान रक्षक है, ऐसे व्यक्ति का घात करने वाला जीव महामोहनीय कर्म बांधता है।
-अध्यक्षा, अभा. श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ
'नयनतारा' सुभाष चौक, जलगांव (महा.)
स्वाध्याय शिक्षा
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