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होता है।
"जे य बुद्धा अतिक्कता, जे य बुद्धा अणागया ।
संति सिं पट्ठाणं, भूयाणं जगई जहा ।। " - सूत्रकृतांग, श्रु1, अ. 11, गा.36
जो बुद्ध (केवलज्ञानी) अतीत में हो चुके हैं और जो बुद्ध भविष्य में होंगे, उन सबका आधार (प्रतिष्ठान ) शान्ति ही ( कषाय मुक्ति या मोक्ष रूप भाव मार्ग) है, जैसे कि प्राणियों का जगती (पृथ्वी) आधार है।
"मित्ती मे सव्वभूएस, वेरं मज्झं न केणई ।। " - आवश्यक सूत्र विश्व के सभी प्राणियों के साथ मेरी मैत्री है, मेरा किसी के साथ कुछ भी वैर नहीं है।
" सव्वे पाणा, सव्वे भूया, सव्वे जीवा, सब्वे सत्ता ।
न हंतव्वा, न अज्जावेयब्वा न परिघेतव्वा,
न उद्दवेयव्वा - एस धम्मे सुद्धे निच्चे सासए । । - आचारांग सूत्र
सभी प्राणों को, सभी भूतों को, सभी जीवों को तथा सभी सत्त्वों को न तो मारना चाहिए, न पीड़ित करना चाहिए, न उनको घात करने की बुद्धि से स्पर्श करना चाहिए और न ही उन्हें अशान्त बनाना चाहिए । यही धर्म, शुद्ध, शाश्वत और नित्य है।
“सव्वभूयप्पभूयस्स समं भूयाइं पासओ ।
पिंहियासवस्स दंतस्स पावकम्मं न बंधई । । " - दशवैकालिक 4.9 जो व्यक्ति सर्वभूतात्मभूत है, सब प्राणियों को अपने हृदय में बसा कर विश्वात्मा बन गया है, संवरनिष्ठ उसे विश्व का कोई भी पाप कभी स्पर्श नहीं कर
सकता ।
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"एगे आया । " - ठाणांग सूत्र 1.1
विश्व की सभी आत्माएँ एक हैं।
"अप्पत्समे मन्निज्ज छप्पिकाए। " - दशवैकालिक सूत्र 10.5 विश्व के समग्र जीवनिकाय को अपनी आत्मा के समान समझो। 'आयतुले पयासु । ” - सूत्रकृतांग सूत्र 1.10.3
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"
प्राणिमात्र को आत्मतुल्य समझो।
"प्रमत्तयोगात् प्राणव्यपरोपणं हिंसा ।। " - तत्त्वार्थ सूत्र 7.43 प्रमादपूर्वक, रागद्वेष की वृत्ति से किसी के प्राणों का नाश हिंसा है। " एयं खु नाणिणो सारं जं न हिंसइ किंचण ।
अहिंसा समयं चैव एतावंतं वियाणिया ।।”–सूत्रकृतांग उद्दे. 4 ज्ञानी जीवन का यही सार है कि वह किसी की भी हिंसा न करे । अहिंसा
का सिद्धान्त इतना ही समझना चाहिए।
" सव्वे अक्कंतदुक्खा य अत्तो सव्वे ण हिंस्सिया । " - सूत्रकृतांग उद्दे. 9
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