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________________ ( 2 ) चतुर्विंशति जिनस्तुति प्रस्तुत रचना में कविवर भैया भगवतीदास जी ने चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति की है। एक-एक छंद में एक-एक तीर्थंकर के जन्मस्थान माता-पिता उनके चिह्न तथा उनकी कुछ विशेषताओं का परिचय देकर अंत में उनकी वंदना की गई है जैसे " आदिनाथ अरहंत, नाभिराजा कुल मंडन । नगर अयोध्या जनम, सर्व मिथ्यामति खंडन ।। केवल दर्शन शुद्ध वृषभ लक्षन तन सोहै। धनुष पाँच सौ देह, इन्द्र शत के मन मोहे ।। मरुदेवि मात नन्दन सुजिन तिंहु लोक तारन तरन । मनभाव धारि इक चित्त सों, भव्य जीव वंदत चरन ।। " प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभनाथ का जन्म अयोध्या नगरी में हुआ था उनके पिता राजा नाभिराय थे और माता मरुदेवी थीं, उनका शरीर पाँच सौ धनुष ऊँचा था उनका चिह्न वृषभ है, वे केवल दर्शन को प्राप्त करने वाले, मिथ्यामति का खंडन करने वाले, तीनों लोक के तारन तरन हैं। मन में उनको धारण कर भव्य जीव (जिनमें मोक्ष प्राप्ति की सामर्थ्य है) उनकी वंदना करते हैं। इसी प्रकार श्री अजित नाथ, सम्भवनाथ; अभिनन्दन नाथ, सुमतिनाथ, पद्मप्रभु, सुपार्श्वनाथ, चन्द्रप्रभु, सुविधिनाथ, शीतलनाथ, श्रेयांसनाथ, वासुपूज्य, विमलनाथ, अनन्तनाथ, धर्मनाथ, शान्तिनाथ, कुंथनाथ, अर:नाथ, मल्लिनाथ, मुनिसुव्रत नाथ, नमिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ तथा भगवान महावीर की वंदना की गई है और अंत में एक दोहे से चौबीसों तीर्थंकरों की वंदना को कल्पवृक्ष के समान बताकर नित्य प्रति इसका पाठ करने का उपदेश दिया गया है। चौबीस छप्पय तथा मात्रिक कवित्त छंदों में निबद्ध यह रचना जैन धर्मावलम्बियों के लिये दैनिक उपयोग की है। ( 3 ) विदेह क्षेत्रस्थ वर्तमान जिन विंशतिका चतुर्विंशति जिन स्तुति के समान ही इस रचना में भी विदेह क्षेत्र में स्थित बीस तीर्थंकरों की वन्दना की गई है, जिनके नाम इस प्रकार हैंश्री श्रीमंधर, श्रीयुगमंधर, श्री बाहु, श्री सुबाहु, श्री सुजाति, श्री स्वयंप्रभु, श्री ऋषभानन, श्री अनन्तवीर्य, श्री सूरप्रभु, श्री विशाल, श्री वज्रधर, श्री चन्द्रानन, श्री चन्द्रबाहु, श्री भुजंगम, श्री नेमप्रभु, श्री वीरसेन, श्री महाभद्र, (70) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002541
Book TitleBhaiya Bhagavatidas aur Unka Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2006
Total Pages252
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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