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भी। जैन पूजा पाठों में अष्टक (अष्ट द्रव्य विसर्जन) के अनन्तर जयमाला होती है वह स्तोत्र का ही कुछ अंशों में रूपान्तर है। डॉ0 देवेन्द्र कुमार शास्त्री के अनुसार "जयमाला का साहित्य केवल जैन साहित्य की ही देन है क्योंकि अनेक प्रकार की पूजाओं को विविध राग रागनियों में पद्यबद्ध करने का कार्य जैन विद्वान एवं आचार्य बहुत समय से करते चले आ रहे है।23 (1) श्री जिनपूजाष्टक
प्रस्तुत रचना द्रव्य पूजा के अन्तर्गत आती है जो जैन धर्मावलम्बियों में अत्यधिक प्रचलित है। प्रायः जैन श्रावक श्राविकाएं प्रातः जिन मन्दिर में जल, चन्दन, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, दीप, धूप, फल अष्ट द्रव्यों से पूजा करते हैं। प्रत्येक द्रव्य प्रतीक रूप में प्रयुक्त होता है। एक-एक पद पढ़कर अन्त में एक-एक द्रव्य चढ़ाते हैं। द्रव्य चढ़ाते समय जो उद्देश्य बोला जाता है उसमें यह प्रतीक भाव प्रकट हो जाता है। जन्म जरा मृत्यु आदि रोगों को धोने के लिये जल चढ़ाते हैं। संसार के सन्तापों की शान्ति के लिए चन्दन, अक्षय पद की प्राप्ति के लिए अक्षत, काम के विकार को नष्ट करने के लिये पुष्प, क्षुधा रोग के विनाश हेतु नैवेद्य, मोहांधकार विनाश के लिये दीप, अष्टकर्म जलाने के लिये धूप और मोक्ष पद की प्राप्ति के लिये फल चढ़ाते हैं।
इस पूजाष्टक में जिनेन्द्र भगवान की अष्ट द्रव्यों से पूजा की गई है। एक पद्य द्रष्टव्य है जिसमें भक्त भगवान के चरणों में पुष्प चढ़ाता है। विभिन्न पुष्पों से कामदेव के शर निर्मित होते हैं, भगवान के चरणों में काम के प्रतीक रूप में पुष्प अर्पित करके वह उनसे काम भावना को नष्ट करने की प्रार्थना करता है"जगत के जीव जिन्हें जीत के गुमानी भयो,
एसो कामदेव एक जोधा जो कहायो है। ताके शर जानियत फलनिके वृंद बहु,
केतकी कमल कुंद केवरा सुहायो है। मालती सुगंध चारू बेलिकी अनेक जाति,
चंपक गुलाब जिनचरण चढ़ायो है। तेरी ही शरण जिन जोर न बसाय याको,
सुमनसों पूजे तोहि मोहि ऐसो भायो है।।" यह पूजाष्टक 12 कवित्त एवं दोहा छंदों में निबद्ध है।
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