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करने वाले भक्त का ध्यान एक मात्र स्तुत्य व्यक्ति के विशिष्ट गुणों की ओर ही रहता है। वह एकाग्रचित्त होकर अपने स्तुत्य के एक-एक गुण का वर्णन मनोहर शब्दों के द्वारा व्यक्त करने में निमग्न रहता है। भक्त स्तुति गुणमाला आदि में भगवान के गुणों का विभिन्न प्रकार से कथन करता है। जयमाला में स्तुत्य का जयजयकार किया जाता है। दूसरे की महत्ता का वर्णन व्यक्ति तब ही कर सकता है जब वह अपनी लघुता की अनुभूति करे। राम के 'खरेपन' का अनुभव ही तब हो सकता है जब अपने 'खोटेपन' की अनुभूति हो जाये।21 अपने लघुत्व और दोषों की अनुभूति ही अहं को विगलित करती है
और पाप रूपीमल को धोकर हृदय को स्वच्छ करती है अतः विनय जो कि हृदय की सात्विकता का प्रतीक है स्तुति स्तोत्र आदि की आधारशिला है।
जैन सिद्धान्त के अनुसार राग-द्वेष से रहित शुद्धात्मा अर्थात् वीतरागी भगवान न कर्ता है न भोक्ता, न वह कुछ ग्रहण करता है न कुछ प्रदान करता है, तब जैन भक्त का उससे किसी भी प्रकार की याचना करना अथवा अपना कल्याण करने की प्रार्थना करना कहाँ तक उपयुक्त है ? आचार्य समन्तभद्र के अनुसार, "वीतरागी भगवान को पूजा वन्दना से कोई तात्पर्य नहीं है, "वे सभी रागों से रहित हैं निंदा से भी उनका कोई प्रयोजन नहीं है क्योंकि उनमें से वैर भाव निकल चुका है, फिर भी उनके पुण्य गुणों का स्मरण भक्त के चित्त को पाप-मलों से पवित्र करता है। "22 वस्तुत: वीतरागी भगवान भक्त के पूजन वन्दनादि भक्ति भाव को भी ग्रहण नहीं करता है फिर भी भक्त सब कुछ पा जाता है। भगवान के गुणों का स्मरण भक्त के हृदय को पापमल से रहित कर पवित्र करता है जिससे स्वयमेव ही पूर्व कर्मबंध का क्षय होता है
और भक्त का कल्याण होता है। इस प्रकार भगवान भले ही कुछ न दे किन्तु उसके निमित्त से ही भक्त की मनोवांछा पूर्ण होती है अत: वह उन्हें कर्ता कहता ही है। जिस प्रकार चिन्तामणि रत्न अथवा कल्पवृक्ष अचेतन होते हैं और उनसे फल प्राप्ति होती है उसी प्रकार भगवान अरहंत या सिद्ध स्वयं रागद्वेष रहित होने पर भी भक्तों को उनकी भक्ति के अनुसार फल देते हैं। इसीलिये जैन भक्त अपनी रचनाओं में जिनेन्द्र भगवान से कभी याचना करता है कभी प्रार्थना और कभी विनती।
संस्कृत प्राकृत तथा अपभ्रंश भाषाओं में जैन स्तोत्र परम्परा अत्यन्त समृद्ध है। हिन्दी जैन साहित्य में स्तुति स्तोत्र जयमाला पूजा पाठ आदि की रचना "भैया" जी से पूर्व भी पर्याप्त मात्रा में होती रही और उनके पश्चात
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