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लाड़ले पुत्र थे इसलिए भी जनसामान्य उन्हें भैया नाम से सम्बोधित करता होगा। इसके अतिरिक्त उन्होंने स्वयं अपनी रचनाओं के संकलन को ब्रह्म विलास के नाम से नामकरण किया यह भी महत्त्वपूर्ण बात है जो इस तथ्य की ओर संकेत करता है कि अध्यात्मपरक रचनाओं के लेखन में उनकी विशेष रुचि रही होगी।
श्रीमती उषा जैन ने भैया भगवतीदास की सभी रचनाओं का विस्तृत परिचय दिया है तथा उनकी भाषा, शैली, छन्द, अलंकार आदि सभी विशेषताओं पर अच्छा प्रकाश डाला है। इस शोध ग्रंथ में कवि की सभी विशेषताओं को पाठकों के सामने प्रस्तुत किया है। आपके इस अध्ययन से हिन्दी का एक महत्त्वपूर्ण एवं सशक्त कवि जो अब तक अल्प चर्चित रहा अपने पूरे कृतित्व के साथ सामने आया है जिससे हिन्दी साहित्य के इतिहास में उसे विशेष स्थान प्राप्त होगा तथा उनकी कृतियों के पठन-पाठन एवं अध्ययन की ओर सभी पाठकों का ध्यान होगा। डॉ. श्रीमती उषा जैन के इस भगीरथ प्रयत्न की जितनी प्रशंसा की जावे वही कम है। भविष्य में वे और भी अचर्चित कवियों को प्रकाश में लाने का प्रयास करेंगी ऐसी उनसे आशा की जाती है। हिन्दी जैन-साहित्य की विशालता को देखते हुए इस ओर विशेष प्रयास की आवश्यकता है लेकिन फिर भी श्रीमती जैन का यह शोध ग्रंथ इस क्षेत्र में मशाल का कार्य करेगा ऐसी मेरी मनोभावना है।
867, अमृत कलश बरकत नगर किसान मार्ग टोंक रोड, जयपुर
डॉ० कस्तूर चन्द कासलीवाल
निदेशक श्री महावीर गंथ अकादमी, जयपुर
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