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________________ पश्चात् बालक कवि ने संवत् 1713 में 3600 पद्यों में सीताचरित्र लिखकर राम कथा को जैन समाज में लोकप्रिय बना दिया। इसके पश्चात् भैया भगवतीदास का समय आता है। ये आगरा निवासी थे । आगरा को 200 वर्षों तक संवत् 1601 से 1800 तक हिन्दी जैन कवियों का केन्द्र रहने का सौभाग्य मिला। इन दो सौ वर्षों में बीसों कवि हुए जिन्होंने हिन्दी काव्यों को एक नया स्वरूप प्रदान किया। आगरा में भैया भगवतीदास के पूर्व होने वाले इन कवियों में महाकवि बनारसीदास के अतिरिक्त पाण्डे रूपचन्द, अर्गलपुर जिन वन्दना के रचयिता पं० भगवतीदास, पाण्डे जिनदास, जगजीवन, कुंअरपाल, परिहानन्द, परिमल्ल हीराचन्द मुकीम, पं० हीरानन्द के नाम विशेषतः उल्लेखनीय हैं। भैया भगवतीदास के उत्तरकालीन कवियों में कविवर दौलतराम कासलीवाल एवं कविवर भूधरदास के नाम विशेषतः उल्लेखनीय हैं। भूधरदास संभवत: आगरा में होने वाले उस कड़ी के अन्तिम कवि थे जिन्होंने पार्श्वपुराण जैसे श्रेष्ठ काव्य की रचना करने का गौरव प्राप्त किया। इस शताब्दी की एक विशेषता यह रही कि स्वयं कवि ही अपनी लघु रचनाओं को एक ही स्थान पर संकलन करके उसे अपने नाम के साथ विलास नाम देना अधिक उपयोगी मानने लगे। बनारसी विलास, द्यानतविलास, ब्रह्म विलास, विवेक विलास, भूधर विलास इसी तरह की कृतियाँ हैं। इतना अवश्य है कि बनारसीदास की लघु रचनाओं का संकलन जगजीवन कवि ने किया । किन्तु ब्रह्म विलास एवं भूधर विलास स्वयं कवि द्वारा दिया हुआ नाम है। भैया भगवतीदास 18वीं शताब्दी के प्रतिनिधि कवि थे। जैन कवियों की पंक्ति में उनका सम्मानीय स्थान है किन्त उनका अभी तक व्यापक अध्ययन नहीं हो सका था। यद्यपि हिन्दी जैन साहित्य के इतिहास लेखकों विशेषतः डॉ० कामताप्रसाद जैन, डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री, डॉ० प्रेमसागर जैन ने भैया भगवतीदास का अपने इतिहास में सामान्य परिचय तो दिया है लेकिन उनके जीवन, व्यक्तित्व एवं कृत्तित्व पर विशेष प्रकाश नहीं डाला जा सका था, इसलिए श्रीमती उषा जैन ने ऐसे महत्त्वपूर्ण कवि पर शोध ग्रन्थ लिखकर तथा उसके व्यक्तित्व एवं कृत्तित्व पर विशद प्रकाश डालकर एक यशस्वी कार्य किया है, जिसके लिए वे धन्यवाद की पात्र हैं। भगवतीदास के नाम के पूर्व भैया शब्द का प्रयोग संभवतः उनके माता-पिता के सम्पन्न घराने के होने का द्योतक है तथा वे अपने माता-पिता के Jain Education International (iv) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002541
Book TitleBhaiya Bhagavatidas aur Unka Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2006
Total Pages252
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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