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________________ 17वीं एवं 18वीं शताब्दी हिन्दी साहित्य के लिए स्वर्णयुग माना जाता है। इन दो शताब्दियों में हिन्दी कवियों में होड़ सी लग गई और सारे देश में हिन्दी के ग्रन्थों की लोकप्रियता में वृद्धि होने लगी, एक साथ कितने ही कवि होने लगे। जैन भट्टारकों ने हिन्दी को बहुत ही प्रश्रय दिया। उन्होंने स्वयं हिन्दी राजस्थानी में अनगिनत रचनाएँ निबद्ध की। भट्टारक रत्नकीर्ति एवं कुमुदचन्द्र के समकालीन होने वाले 70 कवियों का नामोल्लेख परिचय तो हमने श्री महावीर ग्रंथ अकादमी के चतुर्थ भाग में दिया है, जिसे हम पूर्ण नहीं कह सकते। स्वयं कवि रत्नकीति ने छोटी-बड़ी 44 कृतियों को निबद्ध करने का श्रेय प्राप्त किया और उनके शिष्य कुमुदचन्द्र ने 30 कृतियों की रचना करके हिन्दी के गौरव को बढाया और अपनी कृतियों के माध्यम से सारे बागड़ प्रदेश में हिन्दी रचनाओं की धूम मचा दी। इसी शताब्दी में बनारसीदास जैसे यशस्वी महाकवि हुए जिन्होंने समयसार नाटक की रचना करके अध्यात्म क्षेत्र में हिन्दी को प्रवेश दिलाया। समयसार नाटक का स्वाध्याय करने के लिए जन सामान्य ने हिन्दी पढ़ना लिखना प्रारम्भ किया। यही कारण है कि राजस्थान के छोटे-बड़े सभी ग्रंथागारों में समयसार नाटक की पाण्डुलिपि उपलब्ध होती है। बनारसीदास के 'बनारसी विलास' में छोटी-बड़ी 49 रचनाओं का संग्रह मिलता है। जो भाषा, शैली एवं विषय की दृष्टि से उल्लेखनीय कृतियाँ हैं। यदि साम्प्रदायिकता का चश्मा उतार कर बनारसीदास की रचनाओं का गहन अध्ययन किया जावे तो आनन्द विभोर हुए बिना नहीं रहा जावेगा। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि जैन कवि नारी सौन्दर्य के चक्कर में नहीं पड़ कर जगत् की असारता, आत्मा की अनन्त शक्ति का आत्मा पर विजय पाने के उपाय पर काव्य रचना करते रहे और अपने पाठकों को शृंगार रस से दूर रखते रहे। बनारसीदास ने अपने जीवन के 55 वर्ष की जीवन कहानी को सही रूप में अर्थात् जो जैसी थी उसी रूप में बिना नमक मिर्च लगाये प्रस्तुत की। यही कारण है कि बनारसीदास का अर्धकथानक विश्व की महान आत्मकथा मानी जाती है। ____ 18वीं शताब्दी की प्रथम दशाब्दी में महाकवि सभाचन्द हुए जिन्होंने पद्मपुराण को महाकाव्य के रूप में छन्दोबद्ध करने का श्रेय प्राप्त किया। संवत् 1711 में रचित इस महाकाव्य में पूरी जैन रामायण छन्दोबद्ध की गई है जिसकी छन्द संख्या 6606 है तथा जो मुख्यतः दोहा चौपाई प्रधान हिन्दी काव्य है। इसके पूर्व किसी भी जैन कवि ने हिन्दी पद्य में इतनी बड़ी रचना नहीं लिखी थी। रचना धारा प्रवाह चलती है। भाषा सत्य, मधुर एवं सरल है। इस रचना के दो वर्ष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002541
Book TitleBhaiya Bhagavatidas aur Unka Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2006
Total Pages252
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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