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________________ घटाओं ने आध्यात्मिक चिरन्तन सत्य के सूर्य को आच्छादित कर लिया है और मानव उनमें इतना लिप्त है कि उनसे मुक्त होना ही नहीं चाहता। इसे सिद्ध करने के लिये कवि ने एक भव्य जीव (वे जीव जिनमें मोक्ष प्राप्ति की सामर्थ्य है) के पौराणिक आख्यान का आश्रय लिया है। एक दिन एक मुनिराज ने एक प्रश्न के उत्तर में एक कथा सुनाई-"एक पुरुष वन में मार्ग भूलकर भटक गया, महा भयानक अरण्य था वह, चारों ओर सिंह की गर्जना थी। वह इधर-उधर छिपने का प्रयास करने लगा इतने में एक उन्मत्त गज उसकी ओर दौड़ा, वह एक वट वृक्ष की शाख पकड़कर लटक गया। नीचे एक अन्धकूप था जिसमें भयंकर अजगर मुँह फैलाये हुए बैठा था, चारों कोनों में चार नाग बैठे हुए थे, उसने घबरा कर ऊपर देखा तो दो चूहे (एक काला, एक सफेद) उसी शाखा को काट रहे थे जिस पर वह लटका हुआ था। ऊपर एक मधुमक्खियों का छत्ता था। इतने में गज आकर वृक्ष के तने को झकझोरने लगा, जिससे मधुमक्खियों का समूह उड़कर पुरुष को काटने लगा और साथ ही छत्ते से मधु की एक बूंद टपक कर उसके मुख में आ गिरि, मानव सभी विपत्तियों को भूलकर मधु के आस्वादन में निमग्न हो गया। दैवयोग से उसी समय एक विद्याधर युगल उसी मार्ग से जा रहा था, विपत्तिग्रस्त इस मनुष्य को देख वे दोनों ठहर गये, पत्नी के आग्रह पर विद्याधर ने उसका उपकार करना चाहा, किन्तु बार-बार सावधान करने पर भी वह मनुष्य यह कहता रहा बस यह बूंद और चख लूँ फिर चलूँगा। अबकी बार मैं अवश्य आ जाऊँगा। "एक बूंद छत्ता सो खिरै। सो अबके मेरे मुख गिरै।। ताको अबही चख सरवंग। तब मैं चलूँ तुम्हारे संग।। जब वह बूंद दरी मुख माहि। तब दूजी पर मन ललचाहि।" अन्ततः विद्याधर चला गया। शिष्यों के कहने पर अन्त में मुनिराज इस दृष्टान्त को स्पष्ट करते हैं यह संसार ही महावन है जिसमें भवभ्रम कूप हैं। काल ही गज के रूप में मानव जीवन को नष्ट करने के लिए प्रयत्नशील है। वट वृक्ष की शाखा आयु है जिसे रात्रि और दिवस रूपी दो चूहे काट रहे हैं, मानव पर मंडराने वाली मधुमक्खियाँ उसके रोग हैं, अजगर निगोद (देखिये परिशिष्ट) है तो चारों नाग चार गतियों के प्रतीक हैं, मधु की बूंद विषय वासनाएं अथवा सांसारिक सुख है जिसके आस्वादन में मुनष्य लिप्त रहता है विद्याधर सदगुरु के समान हैं। इस प्रकार कवि ने इस रूपक कथा के माध्यम से संसार, काल तथा (44) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002541
Book TitleBhaiya Bhagavatidas aur Unka Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2006
Total Pages252
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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