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________________ को समझाने के लिये भेजा कि उससे कहना 'चेतन का पुर छांड़दे जो जीवन की आस' किन्तु राजा मोह कुपित होकर बोला "तुम्हें लज्जा नहीं आती, अनन्तकाल तक तुम चौरासी लाख योनियों में भ्रमते रहे, इतने दिनों तक मैंने तुम्हारा पालन-पोषण किया, आज मुझसे युद्ध कर रहे हो, महा कृतघ्नी दुष्ट मैं तुम सबको क्षणभर में धूल में मिला दूंगा।' विवेक से राजा मोह की उक्तियां सुनकर ज्ञान हँसा और पूर्ण उत्साह से युद्ध में प्रवृत्त हुआ । चेतनराय के सैनिक संयम का कवच धारण किये हुए थे भयंकर युद्ध छिड़ गया, विवेक ने ध्यान का धनुष लेकर ऐसा प्रहार किया कि राजा मोह के सात महत्वपूर्ण योद्धा - अनन्तानुबंधी (तीव्रतम) क्रोध, मान, माया, लोभ, मिथ्यात्व, सम्यक मिथ्यात्व तथा सम्यक प्रकृति मिथ्यात्व मूर्छित होकर धराशायी हो गये और अव्रत पुर (चतुर्थ गुणस्थान- देखिये परिशिष्ट) राजा मोह के अधिकार से निकल गया। सातों योद्धाओं की मृत्यु का शोक मनाते हुए राजा मोह की सेना देशविरतपुर ( पंचम गुणस्थान) में छिपकर बैठ गई कि अव्रतपुर पर किस प्रकार अधिकार करें । राजा मोह ने मंत्र शक्ति से अपनी सेना के सातों योद्धाओं को जीवित कर लिया तथा सुदढ़ करके पुनः संदेशा भेजा और दोनों पक्षों के मध्य भयंकर युद्ध होने लगा 91 " रण सिंगे बज्जहिं, कोउ न भज्जहि करहिं महा दोउ जुद्ध || इत जीव हंकारहिं, निजपरवारहिं, करहु अरिन को रूद्ध ।। ' मोह ने राग के बाण खींचकर जीव को मारे, खड्ग से पाप पुण्य के वार किये, अतिध्यान का चक्र हाथ में ले लिया और जीव वीतारागता के बाणों से प्रहार करता हुआ, धर्म ध्यान की ओट लेकर, दयालुता की ढाल पर वार बचाता रहा। युद्ध में चेतनराय की विजय हुई। देशविरतपुर में राजा चेतन का अधिकार हो गया राजा मोह ने छल प्रपंच से काम लिया। राजा चेतन की सेना में अपने कुछ सैनिक छिपा दिये किन्तु फिर भी उसकी एक न चली। राजा चेतन अनेक नगरों पर विजय प्राप्त करता हुआ नवमपुर (नवम् गुणस्थान- अनिवृत्तिकरण ) में जा पहुँचा। अब राजा मोह की सेना पर्याप्त मात्रा में छिन्न-भिन्न हो चुकी थी। सूक्ष्म साम्पराय नगर (दसवां गुणस्थान) में पहुँचकर चेतनराय की सेना ने राजा मोह का एक और योद्धा लोभ कुमार मार गिराया। उपशान्त नगर (ग्यारहवां गुणस्थान) में पहुँच कर राजा मोह के छिपे हुये सैनिकों को भी हत कर दिया गया। अब राजा मोह शक्तिहीन होकर इधर-उधर छिपने का प्रयास Jain Education International (42) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002541
Book TitleBhaiya Bhagavatidas aur Unka Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2006
Total Pages252
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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