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________________ हो गये। ज्ञान कहने लगा कि मोह की इतनी शक्ति ही कहाँ है जो उसके लिये इतनी सेना भेजी जाये। किसी एक योद्धा को भेज दीजिये जो उसे पकड़ कर लाये।'' ज्ञान के इस कथन को सुनकर राजा चेतनराय राजा मोह की अपार शक्ति का वर्णन करने लगे। "मोह मिथ्यापुर का राजा है उसके रागद्वेष नामक दो मंत्री हैं संशय नाम का उसका अटूट गढ़ है। विषय तृष्णा नाम की भार्याएं हैं क्रोध मान, माया, लोभ चार (कषाय, देखिये परिशिष्ट) शुरवीर सेनापति हैं। उनके हाथ में भ्रम नाम का चक्र है और अनेक कठोर एवं क्रूर भावों के अचूक बाण हैं।" तत्पश्चात् राजा चेतनराय ने यह भी बताया कि राजा मोह ने मुझे भ्रम में डालकर ही अपनी कुबुद्धि नामक पुत्री का विवाह मेरे साथ कर दिया जिसके सम्पर्क में रहकर मैं अनन्तकाल से चौरासी लाख योनियों में भ्रमण कर रहा हूँ। मैंने उसकी प्रेरणा से कौन-कौन से कुकर्म नहीं किये ? इसी ने मुझे जड़ शरीर का नरेश बना दिया। ज्ञान ने कहा हे राजा चेतनराय आपकी शक्ति भी कुछ कम नहीं है, सुखसमाधि नाम का आपका विशाल देश है, अभय नाम का आपका गढ़ है, सुमति क्षमा, करुणा, धारणा आदि सात पटरानियां हैं धर्म जैसे उत्तम धीर वीर भ्राता हैं, अध्यात्म जैसा पुत्र है। सत्य आदि अनेक मित्र और शूरवीर योद्धा आपके साथ हैं, आप किसी एक को आदेश दीजिये जो सैन्य संचालन करे।" राजा चेतनराय ने ज्ञान को ही आदेश दिया कि तुम हमारा प्रतिनिधित्व करो क्योंकि "हम तुम में कुछ अन्तर नाहि, तुम हम में हम हैं तुम माहिं। जैसे सूरज द्युति को धरे तेज सकल सूर्य द्युति करे। xxxxx तुम तो सब विधि हो गुण भरे पर अरि से कबहूँ नही लरे। तातें तुम रहियों हुशियार युद्ध बड़े अरि से निरधार।" तुमने अभी तक किसी से युद्ध नहीं किया है, अत: बहुत सावधान रहने की आवश्यकता है।" बहुत विचार विनिमय के पश्चात ज्ञानदेव के सेनापतित्व में चेतनराय की सेना ने और कामदेव के सेनापतित्व में राजा मोह की सेना ने युद्ध क्षेत्र की ओर प्रयाण किया। युद्ध के नगाड़े बजने लगे, शूरवीरों के शरीर मे जागृति आ गई। उसी समय ज्ञान ने विवेक नामक दूत को एक बार पुनः राजा मोह (41) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002541
Book TitleBhaiya Bhagavatidas aur Unka Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2006
Total Pages252
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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