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द्रव्यों पर विचार किया है जिनसे जैन दर्शन के अनुसार सम्पूर्ण सृष्टि निर्मित है। वे षट द्रव्य हैं जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल। इनमें से केवल जीव द्रव्य ही चेतनायुक्त होता है। उसमें अनन्त ज्ञान एवं अनन्त शक्ति अंतर्निहित होती है किन्तु वह स्वयं ही अपने उस स्वरूप से अनभिज्ञ रहता है। अनादि काल से जीव कर्म रूपी मल से संयुक्त होकर इसी अज्ञानावस्था में संसार में भटक रहा है। वह स्वयं को शरीर रूप ही समझता है अतः पांचों इन्द्रियों - स्पर्श, रसना, घ्राण, चक्षु तथा कर्ण की सुख साधना में रत रहता है जो उसे अन्ततः विनाश के गर्त में गिराने वाली सिद्ध होती हैं। फिर भी वह शरीर सुख में रत तथा रागद्वेष आदि भावनाओं में लिप्त रहता है। कवि ने एक रूपक के सहारे जीव और उसकी इस अज्ञानावस्था को स्पष्ट किया है। काया रूपी नगरी में जीव रूपी राजा राज्य करता है। वह अपनी एक रानी माया पर बहुत अनुरक्त है। राजा चेतन ने देह रूपी नगर का उचित प्रबन्ध करने के लिए मोह को सेनापति (फौजदार) क्रोध को कोतवाल, लोभ को मंत्री (वजीर) बनाया है, किन्तु ये लोग उस नगर की उचित व्यवस्था करने के स्थान पर उसे लूट-लूट कर शासन व्यवस्था को अस्त-व्यस्त कर रहे हैं। उसकी दूसरी रानी सुबुद्धि उसे सचेत करना चाहती है, अतः मधुर शब्दों में राजा चेतन को प्रबोधते हुए वह कहती है कि दासियों (इन्द्रियों) के साथ क्रीड़ा करते हुए तुम्हें कितना समय बीत गया है, आज भी तुम्हें सुधि नहीं आई। इनके सम्पर्क के कारण ही तो तुमने अनेक कष्ट सहे हैं, मुझे तो अत्यंत खेद होता है कि सम्पूर्ण ज्ञान के स्वामी होकर भी तुम इतने अज्ञानी बने हुए हो। सुबुद्धि रानी प्रश्न करती है- तुम कौन हो, कहाँ से आये हो किसके रंग में रंगे हुए हो, किसने तुम्हें भ्रमित किया है- तुम्हें कुछ सुध भी है ? उन दिनों का स्मरण करों जो तुमने अनादि काल से कष्ट सहते हुए व्यतीत किए हैं, तुम तो स्वयं ही सर्वज्ञ हो यह किसने तुम्हें भ्रमित किया है कि तुम तीन लोक के स्वामी होकर भी इतने दीन हीन बने हुए हो। तुमने अनादि काल से अज्ञान और मोह की मदिरा को पी रखा है, इन्द्रियों की सुख साधना में ही सुख मान रहे हो किन्तु ज्ञान की दृष्टि से देखो तो यही दुःख का कारण है। पुद्गल परमाणु से निर्मित यह शरीर तो विनाशशील है और तुम अविनाशी हो फिर तुम और यह एकरूप कैसे हो सकते है तथा इसकी जय पराजय में ही अपनी जय और पराजय मान रहे हो, यह तुमने कैसा मार्ग ग्रहण किया है। इस देह रूपी क्यारी
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