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थे और बिहारी जैसे कवि 'प्रिय मिलन के सम्मुख मुक्ति के मुंह में धूल*35 डाल रहे थे उस समय सरस्वती का यह पुत्र संसार को 'धूमन के धौरहर'36 के समान क्षणभंगुर बताकर इससे मुक्ति रूपी शिवनारी के वरण की अनेक युक्तियां खोज रहा था। इस सबको देखकर उनके काव्य का महत्व और अधिक हो जाता है। सांसारिकता एवं विलासिता की आंधी में भी हमारी अध्यात्म प्रधान संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखने का श्रेय ऐसे ही कुछ महान व्यक्तियों को है।
संदर्भ एवं टिप्पणियाँ
1. यदुनाथ सरकार, औरंगजेब के उपाख्यान, पृ0 सं0 6 तथा 19. 2. डॉ0 नगेन्द्र, रीतिकाल की भूमिका, पृ0 सं0 1. 3. डॉ0 आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव, भारत का इतिहास, पृ0 सं0 641. 4. यदुनाथ सरकार, औरंगजेब, पृ0 सं0 399. 5. "मेरे निर्जन मैदानों तथा जंगलों में सेना सहित कूच करते रहने के कारण
मेरे बहुत से विश्राम प्रिय अधिकारी, जो अपने माता-पिता से भी असन्तुष्ट रहते हैं, मेरे इस उधार के जीवन की समाप्ति की कामना करते हैं।" -सर यदुनाथ सरकार, औरंगजेब के उपाख्यान, (उपाख्यान सं0
11) पृ0 सं0 48. 6. सर यदुनाथ सरकार, औरंगजेब के उपाख्यान, पृ0 सं0 11. 7. डॉ0 आशीर्वादीलाल, श्रीवास्तव, भारत का इतिहास, पृ0 सं0 638. 8. डॉ आशीर्वादीलाल, भारत का इतिहास, पृ0 सं0 712. 9. डॉ0 आशीर्वादीलाल श्रीवास्तव, भारत का इतिहास, पृ० सं० 665. 10. यदुनाथ सरकार, औरंगजेब, पृ0 सं0 408. 11. डॉ0 नगेन्द्र, हिन्दी का वृहत् इतिहास, षष्ठ भाग पृ0 सं0 7. 12. भैया भगवतीदास, शत अष्टोतरी, पृ0 सं0 41. 13. यदुनाथ सरकार, औरंगजेब, पृ0 सं0 405. 14. वही, पृ0 सं0 408. 15. डॉ कालिका रंजन कानूनगो, दारोशिकोह, पृ0 सं0 151. 16. डॉ0 नगेन्द्र, हिन्दी साहित्य का वृहत इतिहास, षष्ठ भाग, पृ0 सं0 10. 17. सर यदुनाथ सरकार, औरंगजेब, पृ0 सं0 413.
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