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________________ उन्होंने इस काल के कवियों का विभाजन तीन वर्गों में किया, लक्षण ग्रन्थों के अनुकरण पर रचना करने वाले आचार्य केशव, मतिराम, देव, पद्माकर आदि रीति बद्ध कवि, रीतिबद्धता की उपेक्षा करने वाले किन्तु फिर भी उससे प्रभावित बिहारी जैसे रीतिसिद्ध कवि और इसके प्रभाव से मुक्त, रसखान, घनानंद, ठाकुर भूषण जैसे रीतिमुक्त कवि। इस प्रकार अधिकतर तत्कालीन कवि प्रेम और श्रृंगार की इस सरिता में आकंठ मग्न हो रहे थे। श्रृंगार रस का अतिरेक, प्रकृति का उद्दीपन रूप में चित्रण, भावपक्ष की अपेक्षा कलापक्ष की उत्कृष्टता तत्कालीन हिन्दी काव्य की कुछ विशेषताएं थीं। उस समय नारी केवल "भोग्या" ही रह गई थी, नायिका भेद और नखशिखवर्णन के रूप में उसके एक एक अंग का विस्तार से वर्णन हुआ है। भैया भगवतीदास के सम्बन्ध में भी एक किंवदंती प्रचलित है। कहा जाता है कि प्रसिद्ध हिन्दी कवि केशवदास ने अपनी रचना 'रसिकप्रिया' भैया भगवतीदास को समालोचनार्थ भेजी थी, तब उन्होंने उस पर अपनी सम्मति लिख भेजी। यद्यपि केशव तथा भैया भगवतीदास की समकालीनता सम्भव नहीं है तथापि उनके पश्चात् जब भी रसिकप्रिया 'भैया' की दृष्टि में आई तब ही उन्होंने अपने विचार इस सम्बन्ध में प्रकट किये "बड़ी नीत लघु नीत करत है, बाय सरत बदबोय भरी।। फोडा बहुत फुनगणी मंडित, सकल देह मन रोग दरी।। शोणित हाड मांस मय मूरत, तापर रीझत घरी घरी।। ऐसी नारि निरखि कर केशव? 'रसिकप्रिया' तुम कहा करी।।''33 'रसिकप्रिया' में वर्णित नारी का रूप देखकर कविवर 'भैया' का हृदय हा-हाकार कर उठा। नारी का इतना घृणित रूप! हाय केशव! यह तुमने क्या किया? क्या नारी शरीर की यही सार्थकता है! इस प्रकार उस काल में हिन्दी के अधिकांश कवियों की वाणी विलास वैभव की मदिरा पानकर बेसुध हो उठी थी किन्तु साथ ही कुछ कवि ऐसे भी थे जो शृंगार रस की सरिता में न बहकर अपने को तटस्थ किये हुए थे, कविवर भूषण छत्रपति शिवाजी के शौर्य तथा मुगलों पर उनके आतंक का वर्णन कर रहे थे और लाल कवि ने महाराज छत्रसाल का जय जयकार किया। इनके अतिरिक्त जैन कवियों द्वारा भी पर्याप्त मात्रा में काव्य का सृजन किया जा रहा था जिसको हिन्दी साहित्य के इतिहासकारों ने जानने की तथा इतिहास में स्थान देने की आवश्यकता ही नहीं समझी। ये कवि आध्यात्मिक आनन्द (31) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002541
Book TitleBhaiya Bhagavatidas aur Unka Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2006
Total Pages252
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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