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________________ इस समय जैन धर्मानुयायी भी पर्याप्त मात्रा में थे। प्राचीनकाल से चली आ रही समृद्ध जैन साहित्य की परम्परा से यह बात स्पष्ट हो जाती है। आगरा जयपुर आदि तो जैन धर्म के गढ़ रहे हैं। औरंगजेब के समकालीन ही अनेक जैन कवियों की रचनाएं पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं तथा अनेक जैन आचार्यों का उल्लेख भी मिलता है। भगवान महावीर के निर्वाण की दूसरी शताब्दी में इस धर्म की दो शाखाएं हो गई थी दिगम्बर सम्प्रदाय के अन्तर्गत तेरहपंथ, बीसपंथ और तारणपंथ तथा श्वेताम्बर सम्प्रदाय के अन्तर्गत चैत्यवासी, स्थानकवासी (मूर्तिपूजा विरोधी) और श्वेताम्बर तेरहपंथ (मूर्तिपूजा विरोधी) प्रचलित थे। औरंगजेब का इन धर्मावलम्बियों के प्रति कैसा व्यवहार था, इतिहास में इसका कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं है। कोई विशाल मंदिर जैनों का उस काल में नहीं बना, कुछ प्राचीन मंदिर तोड़े गए होंगे किन्तु किसी प्रसिद्ध जैन मंदिर का विध्वंस या तीर्थ का विनाश नहीं किया गया प्रतीत होता। आगरा और दिल्ली के किलों के निकट ही उससे पूर्व के बने हुए विशाल जैन मंदिर सुरक्षित रहे। दिल्ली में लालकिले के सामने प्रसिद्ध जैन मंदिर 'लालमंदिर' शाहजहां ने शाही सेना के जैन सैनिकों और कर्मचारियों की प्रार्थना पर बनवाया था28 उसे उर्दू मंदिर भी कहते हैं। कन्नड़ी भाषा की एक प्राचीन विरुदावली के अनुसार औरंगजेब ने कर्नाटक के एक दिगम्बर जैनाचार्य का भी आदर सत्कार किया था। राजस्थान में जैन धर्मावलिम्बयों के उच्चपदों पर आसीन होने का उल्लेख मिलता है जो उनके पर्याप्त उन्नत अवस्था में होने का द्योतक है। इस युग में जनता अंधविश्वासी होती थी। उसमें आत्मविश्वास का अभाव होता जा रहा था। "सिद्धि प्राप्त चमत्कार कर सकने वाले प्रसिद्ध मुसलमान सन्तों को हिन्दू राजा रईस साधारण जनता भी आदर की दृष्टि से देखते थे। वे जादू में विश्वास करते थे। पीरों और फकीरों के पास अपनी मुरादें लेकर जाते थे। ज्योतिषियों की भविष्यवाणी और सामुद्रिक शास्त्र के द्वारा उनकी कार्यविधियों का परिचालन होता था। 29 धर्म में बाह्य आडम्बरों का बहुत अधिक प्रवेश हो गया था। कविवर भैया भगवतीदास ने भी तत्कालीन आडम्बर-प्रिय साधुओं का स्पष्ट और सजीव चित्रण किया है-- "केऊ फिरै कानफटा, कैऊ शीस धरै जटा, कैऊ लिए भस्म वटा भूले भटकत हैं।। (28) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002541
Book TitleBhaiya Bhagavatidas aur Unka Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2006
Total Pages252
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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