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मंदिर और उदयपुर के तीन शानदार मंदिर भी सम्मिलित थे। जयपुर के वफादार राज्य में भी 67 मंदिर ढा दिए गए। 2 अप्रैल 1669 ई0 को मुस्लिमेतरों पर जजिया या व्यक्तिगत कर फिर से लागू कर दिया गया। वे गरीब आदमी जिन्होंने सम्राट से प्रार्थना की और इस कर में छूट के लिए दीनता से चिल्लाते हुए एक सड़क रोक ली, उसके आदेश पर हाथियों से रौंद डाले और तितर बितर कर दिए गए। मार्च 1695 ई0 में एक दूसरे अध्यादेश के द्वारा राजपूतों को छोड़कर अन्य सभी हिन्दुओं के लिए हथियार लेकर चलने तथा हाथियों, पालकियों अथवा अरबी फारसी घोड़ों पर सवारी करने को मनाही कर दी गई। 23 जो मंदिर को तोड़कर उसके खंडहरों से मस्जिद बना सके उसका कार्य तो अत्यन्त प्रशंसनीय हो जाता था। बादशाह का प्यारा बनने का प्रधान उपाय मंदिरों का भंग था। जिन पाठशालाओं में हिन्दू शास्त्रों का पठन-पाठन होता था, उन्हें उसने बन्द करवा दिया। ....... हिन्दुओं के मेलों पर रोक लगा दी गई। अपने रहन-सहन द्वारा उन्हें अपने दलित होने का . सार्वजनिक रूप से प्रदर्शन करना पड़ता था । प्रत्येक हिन्दू को प्रयाग में गंगा स्नान करने के लिए 6 रूपये 4 आने यात्रा कर के रूप में देने पड़ते थे | 24 इस प्रकार हिन्दुओं के अपमान और अन्याय की सीमा नहीं थी किन्तु आश्चर्य की बात थी कि इतने अपमान और अन्याय ने भी हिन्दुओं को क्रान्तिकारी नहीं बना दिया। उनमें स्वामीभक्ति और राजभक्ति इतनी गहरी थी कि वे औरंगजेब के पक्ष में राजपूत, मराठा, सिख, सतनामी तथा जाटों के दल के विरुद्ध लड़ते रहे । आमेर के मिर्जा राजा जयसिंह जैसे व्यक्ति सदैव औरंगजेब का दाहिना हाथ बने रहे। डॉ० ताराचन्द के अनुसार, "इसका कारण यह प्रतीत होता है कि उस काल के लोग धर्म को निजी और व्यक्तिगत बात समझते थे। धर्म का सम्बन्ध उनके सार्वजनिक तथा राजनैतिक जीवन से न था । "25 औरंगजेब की नीति सुन्नी मुसलमानों के अतिरिक्त सभी धर्मावलम्बियों के प्रति दमनपूर्ण थी जिसके कारण सतनामी और सिख सम्प्रदायों ने सैनिक सम्प्रदाय का रूप धारण कर लिया और मथुरा जिले में गोकुल के नेतृत्व में सन् 1669 ई0 में जाटों का विद्रोह भी इसी प्रकार का प्रयास था किन्तु हिन्दुओं का सम्मिलित संगठित और विस्तृत प्रयास नहीं दृष्टिगत होता ।
औरंगजेब शिया मुसलमानों से भी घृणा करता था। वह शियाओं को पिजी (नास्तिक) समझता था । उसने अपनी एक कटार का नाम रापिजीकुश
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