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________________ के लिए स्त्री पुरुषों को उनके माता पिता बेच देते थे। इस प्रकार दीनहीन जनता त्राहि-त्राहि कर उठी थी, उनके अस्थिपंजर शेष शरीरों पर ही मुगल वैभव का प्रसाद खड़ा हुआ था। सम्राट स्वेच्छाचारी था और उसके अधिकारी निर्द्वन्द्व । उस पर विशेष अंकुश नहीं था। न्याय व्यवस्था विश्वसनीय नहीं रह गई थी। सामान्य जनता को सार्वजनिक सुरक्षा का विश्वास नहीं रह गया था। समाज का कितना नैतिक पतन हो चुका था और प्रजा का सम्मान किस प्रकार असुरक्षित था इस का अनुमान प्रस्तुत तथ्य से सहज ही लगाया जा सकता है। " मुगल अमीरों के नैतिक पतन का एक बहुत ही अर्थपूर्ण उदाहरण हमें वजीर के पौत्र मिर्जा तसव्वुर के चरित्र में मिलता है। अपने साथी गुंडों को लेकर वह दिल्ली में अपने महल से निकलता और तब बाजार में दुकानों को लूटता तथा डोलियों में बैठकर नगर की आम सड़कों पर से निकलने वाली या यमुना नदी की ओर जाने वाली हिन्दू स्त्रियों को उड़ाकर उनके साथ व्यभिचार करता था, फिर भी न तो वहां कोई ऐसा शक्तिशाली या साहसी न्यायाधीश ही था जो उसे दंड दे सकता और न ऐसे अत्याचारों को रोकने के लिए वहां पुलिस का कोई समुचित प्रबन्ध ही था । । 14 अधिकारी वर्ग रिश्वत घूसखोरी और भ्रष्टाचार के रोग से ग्रस्त था और सामान्य प्रजा का जीनव त्रस्त और अभिशप्त था। वह घोर नैराश्य की स्थिति में मूक भाव से सब कुछ सहती थी, किन्तु उसके हृदय से स्वामि-भक्ति और राजभक्ति लुप्त हो गई थी। उसके भीतर छिपी हुई घृणा और आक्रोश की चिंगारियां समय-समय पर फूट पड़ती थीं, जिनका क्रूरतापूर्वक दमन कर दिया जाता था। उत्तराधिकार के युद्ध में दाराशिकोह औरंगजेब से परास्त होकर जब भारत की सीमा पार कर अफगानिस्तान जाने की योजना बना रहा था तब उसी की कृपा से नियुक्त दादर के गढ़ के अधिपति मलिक जीवन ने उसके साथ विश्वासघात कर उसे बंदी बनाकर औरंगजेब भक्त मिर्जा राजा जयसिंह को सौंप दिया। उसकी सेवाओं के लिए, औरंगजेब ने उसे सामन्त बनाया 'बख्तयार खां' नाम दिया, सम्मान देने के लिए दिल्ली बुलाया। जब वह नगर से होकर जा रहा था तब जनता ने " गालियाँ और शापों की मलिक जीवन तथा उसके साथियों पर बौछार कर दी, उन्होंने उस पर कूड़ा और कीचड़ फेंका और ढेले तथा पत्थर बरसाये । परिणाम यह हुआ कि कुछ गिर गए और कुछ मर गए आज के दिन इतना बड़ा विप्लव हुआ Jain Education International (23) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002541
Book TitleBhaiya Bhagavatidas aur Unka Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2006
Total Pages252
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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