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वृहत् कृषक समुदाय तथा श्रमिक वर्ग इनके द्वारा शोषित होता था। इन दोनों के मध्य बहुत अन्तर था । एक ओर वैभव और विलास चरमसीमा को पहुंच रहे थे तो दूसरी ओर दरिद्रता का अतिरेक था। औरंगजेब यद्यपि स्वयं सदाचारी था किन्तु उसके पूर्वज जहांगीर तथा शाहजहां अत्यधिक विलासी थे और विलासिता का तत्व मुगल साम्राज्य की नस-नस में समा गया था । विदेशी यात्री बर्नियर, टेवर्नियर, मनूची आदि शाहजहां का राज्य-वैभव और ऐश्वर्य देखकर स्तम्भित रह गए थे। "दिल्ली के अमीरों के महलों में विषय-भोग अपनी चरमसीमा को पहुंच गए थे। उनके हरम सदैव अनेकानेक देशों और अनगिनत विभिन्न जातियों की नाना विधि के ढंग, चरित्र तथा बुद्धिवाली अनेकों स्त्रियों से भरे रहते थे। 10 सम्राट के महलों में सुन्दरी के साथ सुरा का भी उन्मुक्त व्यापार होता था । मदिरा पान उस समय का सबसे भयंकर व्यसन था । " सामन्तों के घर में उनके अपने हरम थे, जिसमें अपने मनोरंजन के लिए वे मनमानी संख्या में रक्षिताएं और नर्तकियां रखते थे। 11 यद्यपि भैया भगवतीदास अध्यात्मवादी कवि थे तथापि उन्होंने सांसारिक प्राणियों का चित्रण अपने युग के अनुरूप किया है
"कोउ तौ करै किलोल भामिनी सौं रीझि रीझि, वाही सौ सनेह करै कामराग अंग में। कौउ तौ लहै अनंद लक्ष कोटि जोरि जोरि, लक्ष लक्ष मान करै लच्छि की तरंग में । कौउ महा शूरवीर कोटिक गुमान करै, यौ समान दूसरो न देखो कौऊ जंग में ।
कहा कहैं 'भैया' कहु कहिवे को बात नाहिं,
सब जग देखियतु रागरस रंग में । 12
इसके विपरीत दूसरी ओर श्रमिक एवं कृषक वर्ग के मध्य इसका नितान्त विरोधी चित्र दृष्टिगत होता था। उन्हें दिन भर कठिन परिश्रम के पश्चात एक बार ही भोजन प्राप्त हो पाता था । प्रायः उन्हें बेगार के लिए पकड़ लिया जाता और मजदूरी कोड़ों की मार से चुकाई जाती थी । " एक के बाद एक नियुक्त होने वाले जागीरदार के गुमाश्तों में उस जागीर के किसानों का सब कुछ ले लेने की होड़ सी लग जाती थी। 13 दास प्रथा का चलन भी था। युद्धबंदी प्रायः दास बना लिए जाते थे तथा अकाल के समय कर्ज चुकाने
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