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13. भैया भगवती दास, सुपंथ कुपंथ पचीसिका, छं0 सं0 19. 14. भैया विनवहि वारंवारा। चेतन चेत भलो अवतारा।।
(हवै) दूलह शिवनारी वरना। एते पर एता क्या करना।"
भैया भगवतीदास, नंदीश्वर दीप की जयमाला, छं0 सं0 25. 15. भैया भगवतीदास, जिनधर्म पचीसिका, छं0 सं0 2. 16. भैया भगवतीदास, फटकर कविता, छं0 सं0 14. 17. भैया भगवतीदास, ब्रह्मविलास, ग्रंथकर्ता परिचय, छं0 सं0 7. 18. भैया भगवतीदास, द्रव्यसंग्रह कवित्तबंध, (59 कवित्त छंदों के पश्चात्)
चौपाई छ) सं0 4,5,6. 19. 'ये (भैया भगवतीदास) भी बनारसी जी के समान आध्यात्मिक कवि थे,
प्रतिभाशाली थे, काव्य की तमाम रीतियों से तथा शब्दालंकार अर्थालंकार आदि से परिचित थे' पं0 नाथूराम प्रेमी, हिन्दी जैन साहित्य का
इतिहास, पृ0 सं0 53. 20. 'आप (भैया भगवतीदास) प्राकृत संस्कृत तथा हिन्दी भाषा के अभ्यासी
होने के साथ साथ उर्दू, फारसी, बंगला एवं गुजराती भाषा का भी अच्छा ज्ञान रखते थे इतना ही नहीं, उर्दू और गुजराती में अच्छी कविता भी करते थे।' पं0 परमानन्द शास्त्री, कविवर भगवतीदास, अनेकान्त, मार्च
1957, पृ0 सं0 227 से उद्धृत । 21. "भैया एक विद्वान कवि थे। प्राकृत और संस्कृत पर तो उनका अटूट
अधिकार था। हिन्दी गुजराती और बंगला में भी विशेष गति थी। इसके साथ-साथ उन्हें उर्दू और फारसी का ज्ञान था। उनकी रचनाएँ इस तथ्य का निदर्शन हैं।" डॉ0 प्रेमसागर जैन, हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि, पृ0 सं0 269.
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