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________________ मूर्ख कहा- हमसे मूरख समझें नाहीं जबकि केवल दो ही पंक्तियों के पश्चात् वे कहते हैं - “इहि विधि ग्रंथ रच्यो सुविकास, मानसिंह व भगौतीदास।।" जो मूर्ख होने के कारण जिस कृति को समझ भी नहीं सकता, उसी कृति का अनुवाद प्रस्तुत कर रहा है। ज्ञान के साथ विनम्रशीलता भक्त कवियों का आभूषण है। जिस प्रकार क्षमा वीरस्य भूषणम्- क्षमा वीरों का ही आभूषण है उसी प्रकार विनम्रता ज्ञान के साथ ही सौंदर्यवती प्रतीत होती है। सत्य है विद्या विनयं ददाति, विद्या मनुष्य को विनम्र बनाती है। एक अन्य स्थान पर तो विनयोक्ति की पराकाष्ठा ही हो गई है। शत अष्टोत्तरी के अन्त में वह कहते हैं - "एहो बुद्धिवंत नर हंसो जिन मोहिं कोऊ, बाल ख्याल लीनो तुम लीजियो सुधारि के।। मैं न पढ्यो पिंगल न देख्यो छंद कोश कोऊ, नाममाला नाम को पढ़ी नही विचारि के। संस्कृत प्राकृत व्याकरणह न पढ़यो कहूँ, ताते मोको दोष, नाहिं शोधियो निहारि के।। कहत भगौतीदास ब्रह्म को लह्यो विलास, ताते ब्रह्म रचना करी है विस्तारि के।।" विद्वानों के प्रति कवि का यह कथन कि मुझे (अल्पबुद्धि) बालक समझकर इसमें सुधार कर लेना, उसके हृदय की समस्त उदारता, विनम्रता आत्मलघुता को दर्पणवत प्रकट कर देता है। इसी पद में आगे उनका कथन है कि मैंने न छंद शास्त्र पढ़ा है न कोई शब्द कोश देखा है, न ही संस्कृत प्राकृत का व्याकरण पढ़ा है। उनके इस कथन में सत्य की अपेक्षा विनयशीलता का अतिरेक ही दृष्टिगत होता है। बहुज्ञता भैया भगवतीदास जी के बहुज्ञ होने में कोई संदेह नहीं है। पं0 नाथूराम प्रेमी ने उनको कविवर बनारसीदास के समान ही आध्यात्मिक और प्रभावशाली कवि माना है।19 पं0 परमानन्द शास्त्री ने उन्हें प्राकृत संस्कृत तथा हिन्दी भाषा का अच्छा अभ्यासी तथा उर्दू, फारसी, बंगला एवं गुजराती भाषा का भी ज्ञाता स्वीकार किया है।20 डॉ0 प्रेमसागर जैन ने प्राकृत और संस्कृत पर उनका अटूट (12) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002541
Book TitleBhaiya Bhagavatidas aur Unka Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2006
Total Pages252
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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