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________________ भगवतीदास की रचनाओं में एक अन्य स्थान पर भी आता है, वह है परमार्थ पद पंक्ति के अष्टम पद की अन्तिम पंक्ति जो इस प्रकार है " मानसिंह महिमा निज प्रगटे, बहुर न भव में आऊ ।। " अतः निर्विवाद रूप से भैया भगवतीदास के परम मित्र थे । - नाम तथा उपनाम " 'भैया' भगवतीदास जी का उपनाम था जिसका उन्होंने 'ग्रन्थकर्ता परिचय' में संकेत भी किया है। ऐसा प्रतीत होता है कि कविवर अपने 'भैया' उपनाम से ही अधिक प्रसिद्ध थे। उन्होंने अपनी रचनाओं में प्रायः उपनाम 'भैया' का ही प्रयोग किया है। अनेक स्थलों पर 'भविक' शब्द का प्रयोग भी उपनाम के रूप में किया है। यहां कवि को एक लाभ और प्राप्त हो गया है। 'भव्य' जैन धर्म का पारिभाषिक शब्द है जिसका अर्थ है ऐसे जीव जिनमें मोक्षपद प्राप्ति की सामर्थ्य है। कवि ने इस अर्थ में भवि तथा भविक दोनों शब्दों का प्रयोग किया हैं। कुछ स्थानों पर कवि ने रचनाओं के अन्त में अपने पूरे नाम 'भगवतीदास' अथवा उसके विकृत रूप 'भगौतीदास' का प्रयोग किया है। कुछ स्थानों पर नाम के स्थान पर 'दास भगवंत' का प्रयोग किया गया है, जिससे ईश्वर के प्रति कवि की विनयशीलता का परिचय मिलता है। जन्म-स्थान Jain Education International मानसिंह कविवर भैया भगवतीदास का जन्म स्थान आगरा था जिसका उल्लेख कवि ने स्वयं किया है। उन्होंने आगरा का नाम प्रायः उग्रसेनपुर लिखा है। कवि ने कुछ कृतियों के अन्त में रचनास्थान के रूप में आगरा नगर का वर्णन भी किया है जिससे उनके अपने जन्म स्थान के प्रति विशेष प्रेम, आदर भाव एवं गर्वानुभूति की झलक मिलती है। आगरा तत्कालीन युग में जैन साहित्य एवं संस्कृति का गढ़ रहा है। डॉ0 नेमिचन्द शास्त्री ने आगरा के इस महत्व का उचित मूल्यांकन किया है " आगरा की इस भूमि ने लगभग दो सौ वर्षों तक अकबर और औरंगजेब के साम्राज्यकाल में जैन हिन्दी साहित्य का नेतृत्व किया है। यदि हम आगरा की साहित्य सेवा को हिन्दी जैन साहित्य के इतिहास से पृथक कर दें तो उसका मूल्य शून्य हो जाये। 10 हिन्दी के ही अनेकानेक जैन साहित्यकारों ने अपनी विद्वता एवं भक्ति भावना से ओतप्रोत वाणी से आगरा की पुण्य भूमि को गुंजायमान किया है। जिनमें पंडित रूपचंद, कविवर बनारसीदास, पं0 जगजीवन, धर्मदास, कुंवरपाल, पं० हीरानन्द, आदि भैया भगवतीदास से पूर्व तथा द्यानतराय एवं भूधरदास उनके पश्चात् हुए हैं। भैया (1) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002541
Book TitleBhaiya Bhagavatidas aur Unka Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2006
Total Pages252
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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