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पं0 हीरानन्द द्वारा उल्लिखित ज्ञाता भगौतीदास दोनों एक ही व्यक्ति हैं और वे भी ब्रह्मविलास के रचयिता भैया भगवतीदास न होकर पं0 भगवतीदास हैं। डॉ0 बासुदेव सिंह ने भी पं0 हीरानन्द प्रणीत पंचास्तिकाय में वर्णित 'भगौतीदास' को पं0 भगवतीदास ही माना है। काल-निर्णय
भैया भगवतीदास के जीवन के सम्बन्ध में अन्य कोई तथ्य प्रकाश में नहीं आ सके हैं, न अन्तर्साक्ष्य के आधार पर और न ही बहिर्साक्ष्य के आधार पर उनका जन्म अथवा मृत्यु संवत् ज्ञात हो सका। हम केवल अनुमान लगा सकते हैं कि संवत् 1731 में जब उन्होंने काव्य सृजन प्रारम्भ किया तब उनकी आयु लगभग पच्चीस वर्ष तो रही होगी, अतः उनका जन्म अट्ठारवीं शताब्दी के प्रथम दशक में अनुमानित है। सम्वत् 1755 में उन्होंने अपनी कृतियों का संग्रह ब्रह्मविलास के नाम से किया, इसके अतिरिक्त उनकी अन्य कोई कृति उपलब्ध नहीं हुई। अतः हमारा अनुमान है कि सम्वत् 1755 के पश्चात् वे अधिक समय तक जीवित नहीं रहे होंगे। संवत् 1760 के लगभग उनकी मृत्यु हो गई होगी। मित्र
कविवर बनारसीदास ने अपने मित्र-पांच महापुरुषों के नाम का उल्लेख किया है जिनमें से एक नाम भगवतीदास भी है, पं0 हीरानन्द ने अपने पंचास्तिकाय में अपने साथी विद्वानों का उल्लेख किया जिनमें से एक भगवतीदास भी रहे, किन्तु भैया भगवतीदास ने अपनी समस्त रचनाओं में कहीं भी इस प्रकार का संकेत नहीं किया, करते भी कैसे? ये सब उनके साथी मित्र थे ही नहीं। इनके तथा भैया भगवतीदास के कालगत वैषम्य पर विचार किया जा चुका है। उनकी रचनाओं में एक नाम आता है मान सिंह का, जिसको ब्रह्मविलास के प्रकाशक ने उनका परम मित्र माना है और सम्भवतः इसी आधार पर डॉ0 प्रेमसागर जैन ने भी मानसिंह को भैया भगवतीदास का मित्र स्वीकार किया है। उन्होंने द्रव्य संग्रह के अनुवाद को भैया भगवतीदास के मित्र मानसिंह की रचना माना है, किन्तु कविवर 'भैया' जी के अनुसार प्रस्तुत अनुवाद दोनों मित्रों का सम्मिलित प्रयास प्रतीत होता है। अतः इस बात का संकेत मिलता है कि मानसिंह तथा भैया भगवतीदास दोनों के मध्य अवश्य ही मित्रता का भाव रहा होगा। सम्मिलित रूप से किसी कृति की रचना करने का अर्थ ही निकट सम्पर्क का द्योतक है। इसके अतिरिक्त मानसिंह का नाम भैया
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