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समय पंचास्तिकाय का है। पंचास्तिकाय में ही पं0 हीरानन्द ने एक अन्य विद्वान मित्र पं0 हेमराज का भी उल्लेख किया है। पांडे हेमराज का साहित्य रचना काल भी डॉ0 प्रेमसागर जैन के अनुसार सं0 1703 से 1730 तक है। इस प्रकार पं0 हीरानन्द, पं0 जगजीवन, और पांडे हेमराज तो समकालीन थे किन्तु भैया भगवतीदास के रचना काल (सं0 1731-55) से उनका कालगत वैषम्य है। यद्यपि भैया भगवतीदास का जन्म 18 वीं शताब्दी के प्रारम्भ में निश्चित रूप से हो गया होगा किन्तु यह सम्भव प्रतीत नहीं होता कि सं0 1711 में जब पंचास्तिकाय प्रणीत हुआ तब उनकी कीर्ति 'ज्ञाता' के रूप में विस्तार पा चुकी होगी। किसी भी कवि अथवा लेखक को प्रसिद्धि तब ही प्राप्त होती है जब वह पर्याप्त उच्च कोटि के साहित्य का सृजन कर चुका हो, किन्तु भैया भगवतीदास का साहित्य सृजन काल सं0 1731 से आरम्भ होता है। यदि पंचास्तिकाय में वर्णित 'भगौतीदास' को हम भैया भगवतीदास ही मानें तो क्या यह सम्भव हो सकता है कि जब उनके मित्रवर पं0 हीरानन्द, पं0 जगजीवन तथा पांडे हेमराज साहित्य सृजन कर रहे थे, उस समय वे (भैया भगवतीदास) कुछ भी रचनात्मक कार्य न कर रहे होंगे और उन्होंने अपने मित्रों के लगभग तीस वर्ष पश्चात् साहित्य सृजन का कार्य आरम्भ किया होगा?
डॉ0 प्रेमसागर जैन के अनुसार जो तीसरे पं0 भगवतीदास हैं उनका साहित्य सृजन काल सं0 1680 से 1700 तक है। उनका मृगांक लेखाचरित सं0 1700 में रचित है। इस समय तक उनकी ख्याति 'ज्ञाता' के रूप में फैल चुकी होगी। विद्वानों के द्वारा पंचास्तिकाय में उल्लिखित 'भगौतीदास' को कविवर पं0 भगवतीदास न मानकर भैया भगवतीदास मानने की भ्रान्ति का एक कारण यह भी हो सकता है कि पं0 भगवतीदास का जन्मस्थान आगरा नहीं था और पं0 हीरानन्द तथा उनके मित्रगण आगरा निवासी थे तथा भैया भगवतीदास भी आगरा निवासी थे। किन्तु जैसा कि पहले ही कहा जा चुका है कि पं0 भगवतीदास का जन्मस्थान अवश्य ही अम्बाला जिले में था किन्तु उनकी रचनाएं दिल्ली आगरा आदि विभिन्न स्थानों पर निर्मित हुई है। अतः उनका निवास स्थान आगरा भी रहा है। इस प्रकार पं0 हीरानन्द प्रणीत पंचास्तिकाय में वर्णित ज्ञाता भगौतीदास भैया भगवतीदास न होकर पं0 भगवतीदास होने की ही सम्भावना है। निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि कविवर बनारसीदास के मित्रगण पंच महापुरुषों में वर्णित भगौतीदास तथा
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