________________
रमणी चूनड़ी' की रचना वि0 1680 में तथा मृगांक लेखाचरित की रचना संवत् 1700 में हुई थी। यही समय कविवर बनारसीदास का था फिर दूसरे कवि भगवतीदास की, जिनकी कवि बनारसीदास के मित्र के रूप में कल्पना की गई है, कोई कृति उपलब्ध नहीं है, न ही उनके सम्बन्ध में अन्य कोई तथ्य ज्ञात है। अतः यही उचित प्रतीत होता है कि पं० परमानन्द शास्त्री द्वारा कल्पित दूसरे और तीसरे भगवतीदास एक ही व्यक्ति थे। सम्भवतः कविवर बनारसीदास तथा पं0 भगवतीदास का निवास-स्थान भिन्न होने के कारण बनारसीदास के मित्र भगवतीदास तथा पं0 भगवतीदास के भिन्न होने की धारणा बन गई है। कविवर बनारसीदास आगरा निवासी थे तथा पं0 भगवतीदास का जन्म तो अम्बाला जिले में हुआ था किन्तु उनकी रचनाएं विभिन्न स्थानों, आगरा, हिसार आदि में रची गई हैं जिससे प्रतीत होता है कि आगरा भी उनका निवास स्थान अवश्य रहा है। जहाँ तक जन्म-स्थान का प्रश्न है कविवर बनारसीदास का जन्म जौनपुर में हुआ था, किन्तु उनका निवास स्थान आगरा रहा। अतः कविवर पं0 भगवतीदास ही कविवर बनारसीदास के मित्र पंच महापुरुषों में प्रतीत होते हैं कोई अन्य (दूसरे) भगवतीदास नहीं। श्री कामता प्रसाद जैन, श्री अगरचन्द नाहटा, श्री नाथूराम प्रेमी तथा डॉ० बासुदेव सिंह ने पं0 भगवतीदास को कवि बनारसीदास का मित्र स्वीकार किया है।
अब तीसरा प्रश्न यह उठता है कि पं० हीरानन्द प्रणीत पंचास्तिकाय ( रचनाकाल सं0 1711) में जिन भगवतीदास का ज्ञाता के रूप में उल्लेख है, क्या वे भगवतीदास वास्तव में भैया भगवतीदास थे? श्री नाथूराम प्रेमी, मुनि श्री कान्तिसागर जी तथा डॉ० प्रेमसागर जैन, तीनों विद्वानों ने एक स्वर से इन्हें ब्रह्मविलास के रचयिता भैया भगवतीदास ही माना है, जिसकी सत्यता में मुझे सन्देह है। पं० हीरानन्द जी की रचनाएं सम्वत् 1701 से 1711 तक की ही उपलब्ध हैं जबकि भैया भगवतीदास जी का रचना काल सं0 1731 से 1755 तक है।
पं0 हीरानन्द जी ने 'पंचास्तिकाय' में ग्रंथकर्ता के रूप में अपना परिचय देते हुए अपनी विद्वत्मंडली के जिन प्रमुख मित्र जगजीवन का विस्तृत वर्णन किया है, जिनकी प्रेरणा से ही उन्होंने 'पंचास्तिकाय' की रचना की जो कविवर बनारसीदास के परममित्र थे तथा जिन्होंने उनकी मृत्यु के पश्चात् उनकी बिखरी हुई रचनाओं का संग्रह बनारसी विलास के नाम से सं0 1701 में किया था उनका रचना काल 18 वीं शती का आरम्भिक समय था । यही
(4)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org