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1687-1755 तक स्वीकार किया है एवं सम्वत् 1711 में पं0 हीरानन्द कृत पंचास्तिकाय में उल्लिखित भगौतीदास भी इन्हीं भैया भगवतीदास को माना है।
इस प्रकार हमारे सम्मुख अनेक प्रश्न उभर कर आते हैं। क्या कविवर बनारसीदास (जीवनकाल सं0 1643-1700) के मित्र भगौतिदास तथा ब्रह्मविलास (संग्रह काल सं0 1755) के रचयिता एक ही व्यक्ति हो सकते हैं? जिनको पंडित परमानन्द जी ने पहले (अनेकान्त फरवरी मार्च 1942) एक ही व्यक्ति स्वीकार किया किन्तु कुछ समय पश्चात् ही (अनेकान्त दिसम्बर जनवरी सन् 1944-45) भगवतीदास नाम के चार विद्वानों का अनुमान कर के क्रमशः द्वितीय तथा चतुर्थ माना, उसी के आधार पर डॉ0 प्रेमसागर जैन ने अपने ग्रंथ 'हिन्दी जैन भक्ति काव्य ओर कवि' में द्वितीय एवं चतुर्थ भगवतीदास को क्रमशः यह स्थान दिया। मुनि श्री कान्तिसागर जी का दृष्टिकोण निश्चित रूप से भ्रान्तिपूर्ण है। कविवर बनारसीदास का जीवन काल सं0 1643 से 1700 तक है। और भैया भगवतीदास जी की ब्रह्मविलास में संगृहीत कृतियों का रचनाकाल संवत् 1731 से 1755 तक है। मुनि श्री ने भैया भगवतीदास का रचनाकाल सं0 1687 से 1755 तक माना है। एक ही लेखक का रचनाकाल सामान्यतया 68 वर्ष जैसा विस्तृत युग नहीं हो सकता। फिर भैया भगवतीदास जी की सम्वत् 1731 से पूर्व की कोई रचना भी उपलब्ध नहीं है। भैया भगवतीदास जी का जन्म सम्वत् अज्ञात है, और सम्प्रति उसे जानने का कोई साधन भी नहीं है, फिर भी हम यदि उनका जन्म कविवर बनारसीदास के जीवन काल में ही मान लें तो भी दोनों की आयु में प्रौढ़ एवं किशोर अवस्था का अन्तर रहा होगा जिनके मध्य मित्रता जैसा समवयस्कता का सम्बन्ध नहीं हो सकता अत: कविवर बनारसीदास के समकालीन भगवतीदास और ब्रह्मविलास के रचयिता भैया भगवतीदास निश्चित रूप से भिन्न-भिन्न व्यक्ति रहे हैं।
दूसरा प्रश्न यह उठता है कि कविवर बनारसीदास के मित्र भगवतीदास तथा कविवर पं0 भगवतीदास को जिन्हें पं0 परमानन्द जी तथा डॉ प्रेमसागर जैन ने क्रमशः दूसरे तथा तीसरे भगवतीदास माना है, पृथक-पृथक व्यक्ति मानना कहाँ तक उचित है, जबकि यह तथ्य किसी भी ठोस प्रमाण पर आधारित नहीं है। डॉ0 जैन के अनुसार (तीसरे) पं0 भगवतीदास भट्टारक महेन्द्र सैन के शिष्य थे, उनका जन्मस्थल अम्बाला जिले का बूढ़िया ग्राम था। उनकी कृतियों का रचना काल सम्वत् 1680 से 1700 तक है। उनकी 'मुगती
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