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पुत्र लाल जी अर्थात् भैया भगवतीदास के पिता धार्मिक प्रवृत्ति के एक सज्जन व्यक्ति थे अतः धन, वैभव एवं अध्यात्म के प्रति रुचि उन्हें पैतृक सम्पत्ति के रूप में प्राप्त हुई थी। उन्होंने अपनी रचनाओं का संग्रह सम्वत् सत्रह सौ पचपन में वैशाख मास की शुक्ल पक्ष तृतीया, रविवार के दिन ब्रह्मविलास के नाम से किया। इस ग्रंथ में उनकी 67 कृतियां संगृहित हैं। उन्होंने अधिकतर कृतियों के अंत में उनके रचनाकाल का संकेत दिया है जिससे ज्ञात होता कि उनकी कृतियों की रचना संवत् 1731 वि0 से सं0 1755 वि0 तक के मध्य में की गई थी। 'भैया' उनका उपनाम था। केवल ये ही वे तथ्य हैं जो कवि ने अपने ग्रंथ के अन्त में प्रस्तुत किये हैं। ये अत्यल्प होते हुए भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। भैया भगवतीदास सम्बन्धी भ्रान्तियों का निराकरण
भैया भगवतीदास का रचना-काल निश्चित होने पर भी उनके सम्बन्ध में कुछ भ्रान्तिपूर्ण स्थिति बहुत समय तक बनी रही और कुछ सीमा तक अब भी बनी हुई है। इसका मुख्य कारण है कि हिन्दी जैन साहित्य में भगवतीदास नाम के अनेक विद्वान हुए हैं। पं0 परमानन्द शास्त्री के एक लेख के अनुसार भगवतीदास नाम के चार विद्वान जैन साहित्य में हुए हैं। प्रथम 'भगवतीदास' पांडे जिनदास के गुरु थे, दूसरे भगवतीदास प्रसिद्ध जैन कवि बनारसीदास के मित्रगण पंच महापुरुषों में से एक थे जिनकी प्रेरणा पर उन्होंने नाटक समयसार की रचना की थी, तीसरे भगवतीदास भट्टारक महेन्द्रसेन के शिष्य थे और पंडित भगवतीदास के नाम से विख्यात थे, इनका जन्म अम्बाला जिले के बूढ़िया ग्राम में हुआ था और चौथे भगवतीदास ब्रह्मविलास के रचयिता भैया भगवतीदास थे। इसी आधार पर डॉ० प्रेम सागर जैन ने भी भगवतीदास नाम के चार विद्वानों का अस्तित्व स्वीकार किया है। इनमें से चौथे भैया भगवतीदास को इन्होंने श्री नाथूराम प्रेमी के अनुसार, पं0 हीरानन्द के पंचास्तिकाय (सं0 1711 में रचित) में उल्लिखित भगवती दास ही माना है। पं0 परमानन्द शास्त्री के उपर्युक्त लेख से पूर्व एक और लेख प्रकाशित हुआ, जिसमें उन्होंने 'ब्रह्मविलास' के रचयिता भगवतीदास को ही कविवर बनारसीदास (संवत् 1643-1700) के साथी भगवतीदास बताया था। किन्तु कालान्तर में उन्हें अपनी भ्रान्ति का ज्ञान हुआ तत्पश्चात् उन्होंने भगवतीदास नामक उपर्युक्त चार भिन्न-भिन्न विद्वानों की कल्पना की। मुनि श्री कान्ति सागर जी ने भी इन्हीं चतुर्थ भैया भगवतीदास को कविवर बनारसीदास के पाँच मित्रों में तीसरा स्थान (तृतीय भगौतिदास नर) दिया है तथा उनका रचनाकाल सम्वत्
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