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अध्याय - 1
जीवनवृत्त
प्राचीन कवियों से सम्बन्धित पर्याप्त तथा निश्चित सामग्री के अभाव में अनेक भ्रान्तियाँ प्रचलित हो जाती हैं। अधिकतर हिन्दी कवि विपुल साहित्य की रचना करते हुए भी अपने संबंध में प्रायः मौन ही रहे हैं। इसको हम उनकी 'स्वान्तः सुखाय' काव्य रचना की प्रवृत्ति का परिणाम कहें अथवा स्वयं को भौतिक यश एवं प्रसिद्धि से दूर रखने की इच्छा का निदर्शन, किन्तु इससे हम उनके जीवन सम्बन्धी अनेक तथ्यों से अनभिज्ञ ही रह जाते हैं। उन्हें इस बात का क्या पता था कि अनेक शताब्दियों के पश्चात् अनुसधित्सु उनके जीवन वृत्त के सम्बन्ध में भी उतनी ही जिज्ञासा रखेंगे जितनी उनके साहित्य के सम्बन्ध में रुचि रखते हैं। उनसे सम्बन्धित तथ्य अतीत के अंतराल में लुप्त हो गये हैं। बहुत प्रयास करने पर कभी-कभी कोई तथ्य दृष्टिगत हो जाता है जिससे उनके सम्बन्ध में कुछ ज्ञात हो पाता है। जैन कवियों ने प्रायः अपनी कृतियों के अन्त में अपना नाम रचना-काल, और कभी-कभी अपने वंश का परिचय तथा तत्कालीन शासक का संकेत दे दिया है जिससे उनके काल-निर्धारण में तथा कृतियों के सम्बन्ध में निश्चित जानकारी प्राप्त हो जाती है किन्तु अपने व्यक्तिगत जीवन के सम्बन्ध में वे भी प्रायः मौन ही रहे हैं, जिससे उनके सम्बन्ध में बहुत प्रयास करने पर भी कुछ विशेष ज्ञात नहीं हो पाता। किसी भी साधन के अभाव में शोधकर्ता को विवश होकर तत्सम्बन्धी ज्ञान से वंचित ही रह जाना पड़ता है। भैया भगवतीदास ने भी ग्रंथ ब्रह्मविलास के अन्त में अपना संक्षिप्त परिचय दिया है जिसके आधार पर हम उनके जीवन-वृत की रूपरेखा प्रस्तुत कर सकते हैं। जीवन-परिचय
भैया भगवतीदास आगरा के निवासी थे। उस समय भारतवर्ष में मुगल शासक औरंगजेब का शासन था। उनका जन्म ओसवाल कुल में हुआ था। उनका गोत्र कटारिया था, उनके पितामह का नाम दशरथ साहु था जो आगरा के प्रसिद्ध व्यापारियों में से एक थे, लक्ष्मी की उन पर अपार कृपा थी, उनके
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