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(8) जिनगुणमाला, (9) पंचपरमेष्ठि नमस्कार, (10) निर्वाण कांड भाषा, (11) नन्दीश्वर द्वीप की जयमाला, (12) अकृत्रिम चैत्यालय की जयमाला, (13) चतुविंशति तीर्थकर जयमाला, (14) जिनधर्म पचीसिका, उपदेशात्मक साहित्य- (1) पुण्यपचीसिका, (2)अक्षर बत्तीसिका, (3) फुटकर कविता, (4) शिक्षा छंद, (5) परमार्थ पद पंक्ति, (6) मिथ्यात्व विध्वंसन चतुर्दशी, (7) सिद्ध चतुर्दशी, (8) कालाष्टक, (9) उपदेश पचीसिका, (10) सुबुद्धि चौबीसी, (11) अनित्य पचीसिका, (12) सुपंथ कुपंथ पचीसिका, (13) मोह भ्रमाष्टक, (14) आश्चर्य चतुर्दशी, (15) पुण्य पाप जगमूल पचीसी, (16) मूढाष्टक, (17) वैराग्य पचीसिका , (18) दृष्टांत पचीसी, (19) पदराग प्रभाती, (20) फुटकर विषय, (21) परमात्म शतका चित्रकाव्य। ज्योतिष के छंद। काव्यानुवाद। भाव पक्ष
__101-20 रस-निरूपण--स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव, संचारी भाव।
जैन हिन्दी काव्य में शान्त रस का रस राजत्व। भक्ति रस की उद्भावना। जैन धर्म में भक्ति की सम्भावना। भैया भगवती दास के काव्य में भक्ति का स्वरूप--दास्य भक्ति, दाम्पत्य भक्ति, शान्त रस, अथवा शान्ता भक्ति। वीर रस। अद्भुत रस। कला-पक्ष
121-144 अलंकार-योजना। छंद योजना। भाषा। मुहवरे और लोकोक्तियाँ चमत्कारिक शैलियाँ। दार्शनिक-विवेचन
145-202 सृष्टि-कृर्तृत्व विचार। लोकरचना। ईश्वरत्व मीमांसा। गुणस्थान। कर्मसिद्धान्त। सप्तभंगी। सम्यक्त्व और मिथ्यात्व। उपादान-निमित्त विचार। मूल्यांकन एवं प्रदेय
203-210 धार्मिक। सामाजिक। सांस्कृतिक। साहित्यिक परिशिष्ट- ग्रंथ में व्यवहृत जैन धर्म की पारिभाषिक शब्दावली। 211-216 सन्दर्भ-ग्रंथ सूची
219-226
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