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________________ अपने अपने सहज सब, उपजत विनशत वस्त। है अनादि को जगत यह, इहि परकार समस्त।।'"8 कर्म-बंधन में बंदी आत्मा की दशा को वे अत्यधिक आकर्षक ढंग से दो ही पंक्तियों में प्रकट कर देते हैं "ये ही आठों कर्ममल, इनमें गर्भित हंस। इनकी शक्ति विनाश के, प्रगट करहि निजवंस।।" इसके अतिरिक्त धर्म की कठिन साधना को उन्होने कथा कहानी का रूप देकर आकर्षक रूपकों के माध्यम से प्रस्तुत किया है, जिस प्रकार औषधि की कटुतिक्त गोलियों को चीनी से आवेष्टित कर दिया जाता है, जिससे ग्रहण करने वाले को उसकी कटुता का जरा भी आभास नहीं हो पाता। उसी प्रकार चेतनजीव के द्वारा ज्ञान विवेक संयम आदि की सहायता से मोह, अज्ञान, लोभ, क्रोध आदि पर विजय चेतन-कर्म-चरित्र में, काल की भयानकता तथा जीव की असहाय अवस्था मधु-बिन्दुक चौपाई में, इन्द्रियों की लोलुपता पंचेन्द्रिय संवाद के रूप में प्रस्तुत की गई है। इस प्रकार भैया भगवतीदास ने अध्यात्म के नीरस और शुष्क सैद्धान्तिक विवेचन को सरस रूप प्रदान किया। सामाजिक तत्कालीन परिस्थितियों का अध्ययन करते समय हम देख चुके हैं कि तत्कालीन समाज विभिन्न प्रकार के अंध-विश्वासों तथा विकृतियों से ग्रस्त था। आचरण के कोई मापदंड न थे, अनैतिकता का बोलबाला था, धर्म के नाम पर बाह्य आडम्बर ही शेष रह गये थे। ऐसे समय में भैया भगवतीदास ने जन-समाज के सम्मुख धर्म का वास्तविक स्वरुप रखने का प्रयास किया। उन्होंने अपनी समस्त रचनाओं में जीव को मिथ्याबुद्धि का त्याग करके आत्म-कल्याण की ओर अग्रसर होने का संदेश दिया है। उदाहरणार्थ एक कवित्त प्रस्तुत है"नरदेह पाये कहा पंडित कहाये कहा, तीरथ के नहाये कहा तीर तो न जैहै रे। लच्छि के कमाये कहा अच्छ के अघाये कहा, __छत्र के धराये कहा छीनता न ऐहै रे। केश के मुंडाये कहा, भेष के बनाये कहा, जोबन के आये कहा, जराहू न खैहै रे। (207) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002541
Book TitleBhaiya Bhagavatidas aur Unka Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2006
Total Pages252
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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