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________________ भैया भगवतीदास के काव्य का सांगोपांग अध्ययन एवं मूल्यांकन करने के पश्चात् विभिन्न क्षेत्रों में उनके योगदान एवं महत्व पर विचार करना उचित होगा, ये निम्नलिखित हैं- (1) धार्मिक, (2) सामाजिक, (3) सांस्कृतिक, (4) साहित्यिक। धार्मिक भैया भगवतीदास जैन धर्मावलम्बी थे, उन्हें संस्कृत, अपभ्रंश तथा प्राकृत में जैन साहित्य की समृद्ध परम्परा पैतृक सम्पत्ति के रूप में प्राप्त हुई थी, जिसमें अधिकतर जैन-धर्म के सिद्धान्तों का गूढ़ विवेचन उपलब्ध था। स्पष्ट है कि धर्म का सैद्धन्तिक विवेचन वह भी दूसरी भाषाओं में, सामान्य जनता को बोधगम्य नहीं हो पाता और न ही वह उसे आकृष्ट कर पाता है। ऐसी स्थिति में जनमानस धर्म के वास्तविक स्वरूप से अनभिज्ञ ही रह जाता है तथा उसमें अनेक विकृतियां व्याप्त होने लगती हैं। ऐसे समय में आवश्यकता इस बात की होती है कि कोई उन्हें धर्म का सच्चा स्वरूप सीधे सरल और रोचक ढंग से उनकी अपनी भाषा में बताये। भैया भगवतीदास ने यही किया है। उनके पूर्ववर्ती जैन कवि बनारसीदास, पं0 हीरानन्द आदि ने भी ऐसा प्रयास किया था। कविवर बनारसीदास ने समयसार नाटक के रूप में कर्म-सिद्धान्त का सरल और सरस स्पष्टीकरण किया है। पं0 हीरानन्द ने कुंदकुंदाचार्य कृत पंचास्तिकाय का प्राकृत से सरल हिन्दी में पद्यानुवाद किया। भैया भगवतीदास ने इस परम्परा को अग्रसर किया। उन्होंने आचार्य नेमिचन्द्रकृत द्रव्य-संग्रह का प्राकृत से हिन्दी में पद्यानुवाद किया, जिसमें सृष्टि निर्माण के षट-द्रव्य, कर्मसिद्धान्त के सात तत्व तथा मोक्ष मार्ग स्वरूप रत्नत्रय का वर्णन किया गया है। इस प्रकार जैन धर्म के गूढ़ एवं आधारभूत सिद्धान्तों को उन्होंने सीधी सरल हिन्दी में जनता के सम्मुख प्रस्तुत किया। इसके अतिरिक्त धर्म के सिद्धान्तों को उन्होंने व्यावहारिक रूप प्रदान किया। सामान्य जनता के लिए धर्म का सैद्धान्तिक विवेचन उतना महत्व नहीं रखता जितना उसका व्यावहारिक रूप। उन छ: द्रव्यों का अनादि अस्तित्व, जिनसे सृष्टि का निर्माण हुआ है, अस्तित्व के तीन लक्षण,- ध्रौव्य, व्यय, उत्पत्ति तथा ईश्वर के अकर्तृत्व को वे अत्यंत सरल भाषा में हृदयग्राही ढंग से प्रस्तुत करते हैं "छहों सु द्रव्य अनादि के, जगत माहि जयवंत। को किस ही कर्ता नहीं, यों भाखै भगवंत।। (206) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002541
Book TitleBhaiya Bhagavatidas aur Unka Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2006
Total Pages252
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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