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भैया भगवतीदास मिथ्यादृष्टि की विशेषताएं बताते हुए कहते हैं कि वह अपने शुद्ध स्वभाव में तो रुचि रखता नही, शरीरादि परद्रव्यों में अनुरक्त रहता है
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'अपने शुद्ध स्वभाव सों, करै न कबहु प्रीत । लगे फिरहिं पर द्रव्यसो, यह मूढन की रीत । । '
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यह जीव अनादि काल से इसी अज्ञानावस्था में भटक रहा है"पियो है अनादि को महा अज्ञान मोह मद,
ताही तैं न शुधि माही और पंथ लियो है ।। ज्ञान बिना व्याकुल है जहां तहां गिरयो परै,
नीच ऊंच ठौर को विचार नाहिं कियो है ।। किबो बिराने वश तनहु की सुधि नाहिं,
बूडै सब कूप माहिं सुन्नसान हियो है || ऐसे मोहमद में अज्ञानी जीव भूलि रहयो,
ज्ञान दृष्टि देखो भैया कहा ताको जियो है ।। "50 मिथ्यामति जीव संसार में किस प्रकार लिप्त रहता है, आगे इसका
वर्णन करते हुए भैया भगवतीदास कहते हैं
"कोउ तो करै किलोल भामिनी सों रीझि रीझि,
बाहीसों सनेह करै कामराग अंगमें।। को तो लहै अनंद लक्ष कोटि जोरि जोरि,
लक्ष लक्ष मान करै लच्छि की तरंगमें ।। कोउ महाशूरबीर कोटिक गुमान करै,
रंगमें ।।"
मो समान दूसरो ने देखो कोऊ जंगमें ।। कहैं कहा 'भैया' कछु कहिवेकी बात नाहिं, सब जग देखियतु रागरस भैया भगवतीदास ने विभिन्न रूपक कथाओं के माध्यम से भी जीव की इसी मिथ्यात्व दशा का वर्णन किया है। चेतन कर्मचरित्र में कवि ने बताया है कि चेतन रूपी राजा अनादि काल से कुमति रानी के प्रभाव में है, एक दिन उसकी दूसरी रानी सुमति उसे सचेत करती है तो रानी कुमति राजा चेतन से रुष्ट होकर अपने पिता राजा मोह के पास चली जाती है, तदनन्तर राजा चेतन तथा राजा मोह के बीच घोरं युद्ध होता है और चेतनराज की विजय होती है।
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