________________
इन तीनों से तात्पर्य क्या है ? जीवादि सात तत्वों की सच्ची श्रद्धा करना सम्यग्दर्शन, इन तत्वों का सच्चा ज्ञान, सम्यग्ज्ञान, और आत्मतत्व को प्राप्त करने का सम्यक्आचरण ही सम्यक्चारित्र कहलाता है। इस मार्ग पर आरूढ़ होने से ही जन्म मरण का दुख दूर हो निःश्रेयस या मोक्ष की प्राप्ति होती है।
आचार्य उमास्वाति ने तत्वार्थ सूत्र में कहा है'तत्वार्थश्रद्धानम् सम्यग्दर्शनम्।'
अर्थात् तत्वों (सात) पर श्रद्धा करना ही सम्यक् दर्शन है। तत्व सात हैं- जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष। इनका सम्यक् ज्ञान होना ही सम्यग्ज्ञान है तथा तदनुरूप आचरण ही सम्यक् चारित्र है। द्रव्य संग्रह (अनुवाद) में भैया भगवतीदास ने सम्यक् दर्शन इस प्रकार बताया है"जीवादि पदार्थनि की जोंन सरधानरूप,
रुचि परतीति होय निज पर भास है। ताको नाम सम्यक कहा है शुद्ध दरशन,
जाके सरधाने विपरीत बुद्धि नाश है।। आत्म स्वरूप को सुध्यान ऐसे कहियतु,
जाके होत होत बहुगुण को निवास है।। सम्यक दरस भये ज्ञानहु सम्यक होय,
इन्है आदि और सब सम्यक विलास है।।" वस्तुतः जो इन सात तत्वों को भली प्रकार से जान लेता है, उसका संसार के प्रति दृष्टिकोण ही परिवर्तित हो जाता है। जीव और अजीव का ज्ञान होने पर ही उसे ज्ञात हो जाता है कि जीव चेतन, अमूर्त, शुद्ध एवं निर्विकार होता है, शरीर आदि जिन्हें वह अपना समझता है वे तो वास्तव में पर पदार्थ हैं। आस्रव बंध तत्वों का ज्ञान होने पर वह जान लेता है कि किस प्रकार कर्मपरमाणुओं ने जीव को बंदी बना रखा है, मोक्ष तत्व जान लेने पर उसे ज्ञात हो जाता है कि जीव को इन कर्म-बंधनों से मुक्ति प्राप्त करनी है और यही उसका लक्ष्य है, संवर और निर्जरा तत्व उसे इसी लक्ष्य की प्राप्ति का उपाय बताते हैं। यही सम्यक् ज्ञान है। तब शरीर से उसका ममत्व घटने लगता है, इसको वह अपने से भिन्न पर-पदार्थ समझने लगता है, सांसारिक पदार्थ उसके लिए तुच्छ और नगण्य हो जाते हैं यही सम्यक् दर्शन है और ऐसे व्यक्ति को सम्यग्दृष्टि कहते हैं। इसके अनुरूप आचरण करना ही सम्यक् चारित्र हैं।
(187)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org