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________________ है कि इस सृष्टि का निर्माता कौन है ? जैन दर्शन सृष्टिकर्ता के रूप में किसी भी युग पुरुष की कल्पना नहीं करता, यह सृष्टि अनादि है, अनिधन है, वस्तु के गुण और पर्याय भी अनादि हैं। वस्तु के स्वभाव के अनुसार, जिस प्रकार आज अनेकों परिवर्तन हो रहे हैं, उसी भाँति सदैव से होते आये हैं और होते रहेंगे। संसार में वस्तु से, उसके स्वभावानुसार वस्तु की उत्पत्ति होती रहती है। सागर का जल वाष्प बनकर आकाश में मेघ खंड बनता है फिर जलवृष्टि के रूप में धरा पर आ जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि वस्तु अस्ति से नास्ति रूप कभी नहीं होती और नहीं नास्ति से अस्ति रूप होती है केवल अपनी पर्याय बदलती है। इस प्रकार संसार में न तो एक परमाणु कम होता है न अधिक । प्रत्येक वस्तु अपने-अपने स्वभावानुसार कार्य करती हैं और सृष्टि का चक्र चलता रहता है। कविवर भैया भगवतीदास ने अनादि बत्तीसिका में इस विषय पर विस्तार से विचार प्रकट किये हैं "सूरचंद निशदिन फिरै, तारागण बहु संग ।। यही अनादि स्वभाव है, छिन्न इक होय न भंग ।। " X X X X X " को बोवत वन वृक्ष को, को सींचत नित जाय। फल फूलनि कर लहलह, यह अनादि स्वभाय ॥ । ' 12 इसी प्रकार से अपने-अपने स्वभाव के अनुसार समय पर सृष्टि का प्रत्येक पदार्थ अपना-अपना कार्य करता रहता है, वसंत के आगमन की सूचना मिलते ही वनस्पति फूल उठती है, वर्षा ऋतु में स्वतः ही जलवृष्टि होने लगती है। जल स्वतः ही नीचे की ओर बहता है, अग्नि की शिखा ऊपर ही उठना चाहती है, मीन के नवजात को तैरना कौन सिखाता है ? पक्षी स्वत: आकाश में पंख पसारना सीख जाते हैं। कवि आगे कहते हैं- सर्प के शरीर में विष अथवा सिंह शावकों में शौर्य कौन भर देता है "कौन सांप के वदन में, विष उपजावत वीर । यह अनादि स्वभाव हैं, देखो गुण गम्भीर || कहो सिंह के बालको, सूरपनो कब होत । कोटि गजन के पुंज को मार भगावै पोत । । " , प्रत्येक वस्तु के अनादित्व की घोषणा करते हुए कवि कहते हैं " पृथिवी पानी पौन, पुन अग्नि अन्न आकास। है अनादि इहि जगत में, सर्व द्रव्य को वास । Jain Education International (151) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002541
Book TitleBhaiya Bhagavatidas aur Unka Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2006
Total Pages252
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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