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________________ कानन को कहा नाम ? बहुत सों कहियत जो है ?।। भूपति के संग कहा ? साध राजै किहं थानक ?। लच्छिय विरथी कहाँ ? कहा रेसम सम वानक ?।। श्रेयांसराय कीन्हो कहा ? सो कीजे भविजन ददा। सब अर्थ अन्त यह तंत, सुन वीतराग सेवहु सदा।।"45 इस छंद में बहुत से प्रश्न हैं और इसी छन्द की अन्तिम पंक्ति के 'सुन वीतराग सेवहु सदा' के वर्गों को विशेष क्रम से लगाने पर सब प्रश्नों के उत्तर निकल आते हैं। इसके तीसरे और दूसरे अक्षर से वीन (पहले प्रश्न का उत्तर) चौथे और दूसरे से तन, पांचवे दूसरे से रान, छठे और दूसरे से गन, सातवें दूसरे से सेन, आठवें दूसरे से वन, नवें दूसरे से होन (हुन) दसवें दूसरे से सन और ग्यारहवें दूसरे से दान बनकर सब प्रश्नों के उत्तर निकलते हैं। इस प्रकार यह भी अंतापिका का ही उदाहरण है। भैया भगवतीदास ने कुछ एकाक्षरी, द्वयक्षरी, त्रयक्षरी, चतुरक्षरी दोहों की भी रचना की है। कवि केशवदास ने भी इस प्रकार के छंदों की पर्याप्त मात्रा में रचना की है। भैया भगवतीदास के काव्य से कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं एकाक्षरी "नानी नानी नान में, नानी नानी नान।। नन नानी नन नान नै, नन नैनानन नान।।46 द्वयक्षरी "मान न मानों मान में, मान मान मैं मान।। मनु न मानै मान में, मान मानु में मान।।147 इन छंदों का अर्थ मस्तिष्क को पर्याप्त व्यायाम कराने के पश्चात् कुछ न कुछ तो निकल ही आता है किन्तु दृष्टि बाय चमत्कार पर ही उलझकर रह जाती है हृदय तो उसमें रम ही नहीं पाता। इस प्रकार इन शैलियों में काव्य का कलापक्ष ही पुष्ट है, भाव पक्ष अत्यंत शिथिल हो गया है। सामान्य व्यक्ति को तो ये छंद बोधगम्य भी नहीं हो सकते। यह भैया भगवतीदास पर तत्कालीन रीतिकाव्य का प्रभाव है। यद्यपि इन शैलियों का उपयोग अपेक्षाकृत कम ही किया गया है तथापि वे अपने युग से नितान्त अप्रभावित भी न रह सके। (142) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002541
Book TitleBhaiya Bhagavatidas aur Unka Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2006
Total Pages252
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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