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________________ 1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. लोकोक्तियाँ जोवन की जेब भरे, जुवति लगावे गरे । गुड़ खाय जो काहे न कान विंधावे । सूरन की नहिं रीति, अरि आये घर में रहे। जैसी कछु करनी, तैसी भरनी । दिन दश निकस बहुर फिर परना । वेश्याघर पूत भयो बाप कहै कौन सो । आज काल जम लेत है तू जोरत है दाम । जगहिं चलाचल देखिये कोड सांझ कोउ भोर । इहि काल बली सों बली नहिं कोय | आतम के काज बिना रज सम राज सुख । हाथ ले कुल्हारी पांय मारत है अपनो । इक अंगुल परमान रोग छानवें भर रहे। वोवे जे वंबूर ते तौ आम कैसे खांवेगे। सूत न कपास करै कोरी सो लठालठी । गुरु अंधे शिष्य अंध की लखै न बार कुबार । कौडी के अनन्त भाग आपन बिकाय चुके । बीति गयो औसर बनाय कहै बतियां । सांप तजै ज्यों कंचुकी, विष नही तजै शरीर । सापहि गहि पकरिये, कुगुरु न पकर गंवार | सारांश यह है कि उपयुक्त स्थलों पर उपयुक्त मुहावरों और कहावतों के प्रयोग से भैया भगवतीदास की भाषा में बोधगम्यता, स्वाभाविकता, सजीवता तथा रोचकता आ गई है। इनके प्रयोग से अर्थगाम्भीर्य के साथ-साथ भाषा में प्रवाह का भी संचार हुआ है। चमत्कारिक शैलियाँ 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. भैया भगवतीदास ने उस समय काव्य-रचना की जब हिन्दी साहित्य में रीतिकाल चल रहा था। यद्यपि वे रस अलंकार आदि के क्षेत्र में तत्कालीन प्रवृत्तियों से अप्रभावित रहे तथापि अपने युग से नितान्त असंपृक्त भी वे न रह सके। उन्होंने कथन की अनेक चमत्कारपूर्ण शैलियों को अपनाया जिनमें Jain Education International (139) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002541
Book TitleBhaiya Bhagavatidas aur Unka Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2006
Total Pages252
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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